Laghu Katha Bewajah

हमारी परीक्षाओं का आखिरी दिन था। मुझे आज भी याद है स्कूल का वो दिन और वो बारिश का पानी जब हम सब चारों सखियाँ छाता होने के बावजूद छुट्टी होने के बाद बारिश मे खूब भीगीं थी और कपड़े सूखने के बाद ही घर गई थी क्योंकी हम सब घर से परमीशन लेकर आए थे कि आज हम घर देर से आऐंगे क्योंकी आज आखिरी पेपर था तो घर वाले भी आसानी से मान गए थे।

उसी दिन हमारी मौसी भी गांव से आई हुईं थी। जब मै घर देर से आई थी तो मौसी ने बहुत सवाल किए थे जो मुझे बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगे थे लेकिन संस्कारों के चलते मैने उनकी सारी खरी खोटी चुपचाप सुन ली थी।

मुझे चुपचाप सब सुनता देख पिता जी ने मुझसे कहा-मीनू, बड़ों का आदर सम्मान करना अच्छी बात है मगर कोई बेवजह हमारे चरित्र मे उंगली उठाए तो हमें खुलकर जवाब देना चाहिए।

उस दिन के बाद मैने पापा की बात गाॅठ बाॅधकर रख ली। अब कोई मुझपर बेवजह उंगली उठाता है तो मुझे पापा की याद आ जाती है और मैं उन्हें मुँहतोड़ जबाब देती हूॅ।

Abha Gupta

रचना: आभा गुप्ता

इंदौर (म.प्र.)

यह भी पढ़ें :-

अरुणोदय काल | Kavita Arunoday Kaal

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here