कुंअरा बाप | Laghu Katha Kunwara Baap

बैड पर पड़ा लगभग दो महीना का बच्चा लेटा जोर जोर से रो रहा था और रसोई में विपुल उसके लिए दूध की बोतल तैयार कर रहा था साथ ही अपनी कमीज की बाह से बींच बीच में आँखे पौछ रहा था।

बोतल तैयार करके वह बैड पर आया और गोद में उठा उसके मुँह से बोतल लगा दी। बच्चा चुप हो दूध पीने लगा और विपुल स्मृतियों में खो गया। वह सोचने लगा –

“शायद यह पिछले दस वर्षो के रिश्ते से निकला एक श्राप ही हैं जिसे वह आज तक नाम तो नही दे पाया लेकिन परिणाम को अंजाम दे बैठा। अब श्राप को तो पूर्ण सिद्ध करना ही पड़ेगा। तभी तो वह नौकरी से छः महीने के अवकाश पर चल रहा हैं जिसके कारण भोजन के भी लाले पड़ गए।

लेकिन रीमा को क्या हुआ? कैसे वह दो महीने के बच्चे को छोड़ कर चली गईं? कहाँ गया उसका ममत्व? ऐसे भी कोई माँ अपने दो दिन के बच्चे को छोड़ जाती हैं? यदि रिश्ता रास नही आ रहा था तो पहले ही छोड़ देती।

अपने बच्चों से पहले मशविरा कर लेती। मैंने तो दोनों की जिम्मेदारी निभाने की स्वीकृति दे दी थीं। नौ साल तक उसके बच्चों को अपनी माँ के रिश्ते का पता नही चला और बच्चे के आते ही अपना निर्णय घोषित कर बैठे।

भला क्या यह बच्चा उसका नही? अभी तो यह दो ही महीनो का हुआ हैं आगे कैसे पलेगा? कब तक नौकरी छोड़े रहूंगा?” आदि विचार एक के बाद एक उसके मन में उमड़ कर उसे बेचैन कर रहे थे और आँखों से गंगा जमना बह रहीं थीं।
बच्चा दूध पीते पीते सो गया और विपुल बच्चे की नैपी धोने में लग गया।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

यह भी पढ़ें :-

बेवजह | Laghu Katha Bewajah

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *