चकई की वापसी | ललित
होली अंक के लिए रचनाएं मंगा कर जगह नहीं देना भी एक होली है। किसी के लिए उत्साह की होली तो किसी के लिए धुआं- धुआं कर जलने की होली। चिंता नहीं बस फिक्र कीजिए ना जनाब, चिंता कीजिएगा तो सूख कर लकड़ी हो जाइएगा, कोई काम नहीं आएगा।क्योंकि यहांँ मुँह देख कर गुलाल लगाया जाता है।
यदि आप ब्यूटीपार्लर से बन-ठन कर निकले हैं तो लोग आपके मुँह में अबीर-गुलाल पोत देंगे। ब्यूटीपार्लर में तो पैसे वाले जाते हैं न, और पैसे वालों से ही ही ही हँस कर होली खेलने में आनंद ही कुछ और होता है। सोफे पर बैठ कर प्लेट से किशमिश खाने का आनंद। कबड्डी में जैसे मिलकर लोग टांग लेते हैं ठीक वैसे ही पैसे वाले भी आपके मुँह में अबीर-गुलाल लगाकर टांग लेंगे। और जमीन छोड़ देते हैं लोग आनंद में।
आपकी ‘होली की चकई’ बिछुई गई है तो आप चकवा होकर चिंता मत कीजिए। दूध में भांग औंट कर लीजिए, भांग। और चलिए हम भी आपके साथ चलते हैं। आपके साथ इसलिए कि हमारी चकई भी हमसे बिछड़ गई। चिंता करने से अच्छा है कि जब गली सुन पड़ जाएगी तो हमलोग अपनी-अपनी चकई की टोह में चलेंगे। खोजने और टोहने में अंतर समझिए आप। खोज लोगों से पुछ-पुछ कर किया जाता।
हमें किसी से पुछना नहीं होगा। नहीं तो काबिल लोग पता ही नहीं चलने देंगे चकई प्यारी को। टोह में बस मौनिया बनकर अपनी दृष्टि इधर-उधर डालते चलिए। इस फार्मूला पर ध्यान दीजिए कि चकई प्यारी जहाँ होगी उसकी चुड़ियाँ खनकेगी और हम लोग धर लेंगे। उस घुआघांख को। तब ,,, तब अपने अपने हृदय में राहत महसूस करेंगे।
और हाँ जब यह फार्मूला फैल करेगा तो हम दोनों ब्लैक बोर्ड का एक एक चॉक ले लेंगे। भांग का नशा तो होगा ही हम दोनों पर। एक बात यह भी ध्यान रखना होगा कि भांग में विवेक ज्यादा काम करता है ज्ञान मरता नहीं है और न ही शराब के नशा जैसा किसी आदमी को बजबजाती नाली में गोता लगवाता है।
सारी रात सुनसान गली में एक तरफ से आप तो दूसरी ओर से हम चिन्ह खिचेंगे। जहाँ भी जिस मकान में चकई प्यारी होगी, उसकी चुड़ियाँ खनकेंगी, वह सहमति के बिस्तर पर नहीं बल्कि विरोध पर उतारू होगी।फालतू की रार में कोई बलजोरी करेगा तो चॉक से उस मकान पर पक्का सबूत का चिन्ह मार देंगे।तब जाकर इस होली में हम दोनों की चकई बचेगी बलबेर्ही से। छुछुंदरन से।
विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड