मां का दर्द | Maa ka Dard
मां का दर्द
( Maa ka dard )
संसार में कोई ऐसी दवा नहीं ,
जो मां का दर्द दूर कर सके।
आठों पहर जो स्वयं को भुलाए,
दूसरों के दुख की चिंता करती।
उसकी भूख खत्म सी हो गई,
बच्चों को पीड़ा से कराहते देख।
मातृत्व के समान इस जग में,
कोई और महानता नहीं है ।
पत्थरों की देवी मां की मूरत पूजें ,
जीवित मां को यूं छोड़ चला।
बचपन से जवानी कब आई,
कब बुढ़ापे ने आखिर आ घेरा ।
जिंदगी की कब अंतिम सांस आए
किसी को ना पता नहीं चल सका।
दुख पीड़ा तनाव चिंता को पीकर
प्रेम दया करुणा ममता बांटती है
उसकी ममत्व की छांव में,
सारे जहां की खुशी मिल जाती।
कहते परमात्मा इस धरा पर नहीं आ सकता ,
इसलिए उसने प्रेम से गढ़ा है मां को।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )