मां कुष्मांडा | Maa Kushmanda
मां कुष्मांडा
( Maa Kushmanda )
अष्टभुजी मां कुष्मांडा को सादर कर लीजिए प्रणाम,
सृष्टि रचना के समय से ही जग में चलता इनका नाम।
सूर्यमंडल के भीतर होता है माता का निवास,
किसी अन्य के बस में नहीं है जो वहां कर सके वास।
ये देवी ही पूरे ब्रम्हांड की रचना करने वाली,
समूचे जगत की जननी है ये माता शेरावाली।
अमृत कलश लिए हुए माता आई सृष्टि को तारने,
पतित पावनी दुर्गा भवानी भक्तों के कष्टों को हरने।
सिंह पर सवार होकर आई है देवी कुष्मांडा माता,
इनके रूप अनुपम से सारा जगत है चकरा जाता।
अष्ट भुजाओं वाली माता इनकी सूर्य सी आभा,
संपूर्ण जगत में फैला तेज इनकी ही प्रभा।
हस्ते धारण करती धनुष बाण चक्र गदा और कमल,
सभी सिद्धियों को देने वाली जपमाला और कमंडल।
जो जन सच्चे मन से इनकी करता है आराधना,
आधियां व्याधियां मिट जाती पूर्ण होती मनोकामना।।
रचनाकार –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )