Kavita main kya doon watan ko
Kavita main kya doon watan ko

मैं क्या दूं वतन को

( Main kya doon watan ko )

 

दुखी हो रही आज भगीरथी कोस रही है जन को।
गंदा हुआ तन सारा मेरा मैं क्या दूं अब वतन को।

 

निर्मल निर्मल नीर सुरसरि नित बहती गंगा धारा।
नेह उमड़ता था घट घट में झरता सुधारस प्यारा।

 

दुनिया के पाप धोते-धोते गंगा मैया मैली हो गई।
मतलबी संसार में देखो कैसी अठखेली हो गई।

 

कचरादान बनाकर छोड़ा ऊंचे महलों वालों ने।
नियत के लोभी अंधो ने स्वार्थ के अरमानों ने।

 

लूट खसोट निरंतर जारी लगा हुआ काला बाजार।
काले कारनामों का चिठ्ठा रग रग फैला भ्रष्टाचार।

 

सुरसरि तीर झूठ पाखंड का जमा हुआ है मेला।
कैसे हो उदार उनका भीड़ का आलम रेला।

 

किसको पड़ी अब गंगा घाट की कौन संभाले आकर।
जिनको पाला बड़ा किया वही छोड़े वृद्धाश्रम जाकर।

 

कह रही मां देवगंगा सब स्वच्छ रखो मेंरे जल को।
गंदा हुआ तन सारा मेरा मैं क्या दूं अब वतन को।

?

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

Chhand Shailputri | शैलपुत्री

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here