माँ से बना बचपन मेरा
माँ से बना बचपन मेरा
अजब निराला खेल बचपन का l
दुनिया ने लिया पक्ष सक्षम का ll
बचपन ने लिया पक्ष माँ का l
आज भी धुन माँ की लोरी की ll
सुनाओ , फिर से कहानी माँ की l
माँ से बना बचपन मेरा ll
किसी ने पूँछा ” मुकद्दर ” क्या है ?
मैं ने कहा मेरे पास ” माँ ” है ll
किसी ने पूँछा सुखी जीवन क्या है ?
मैं ने कहा “माँ का वात्सल्य भाव ” है ll
किसी ने पूँछा ” जन्नत ” देखी है ?
मैं ने कहा ” माँ को देखा ” है ll
बचपन मेरा स्वर्ग बना l
माँ का साया संघ बना ll
Vidio नहीं , लोरी सुनना l
game नहीं , लंगड़ी खिलाना ll
घर का उत्साह माँ की रसोई ना l
घर की शान माँ के संस्कार ना ll
विश्व को जीतना , मुझे है नहीं l
माँ के बिन , मुझे रहना है नहीं ll
मेरी माँ अनपढ़ है , निर्दय नहीं l
थोड़ा माँगू तो बहुत देती है ll
घर में पढ़ाती , आँगन में खेलाती l
थाम कर ऊँगली सारा संसार बताती ll
पृथ्वी का अनमोल उपहार है माँ l
बिन डिग्री के डॉक्टर है माँ ll
पहली गुरु का वर है माँ l
जिंदगी के तजुर्बों का खजाना है माँ ll
आदि से अनादि तक है माँ l
मेरे सुःख – दुःख का आँचल है माँ ll
पत्नी – सपूत की कामना संपत्ति की l
माँ की कामना सु:खी जीवन की ll
मित्र और संबंधी समय से जुड़े l
लेकिन माँ जन्म से अंत तक जुडी ll
पिता जीने की शक्ति है l
तो माँ जीने की उम्मीद है ll
संत , साधु , नबी , फिर , दास और ,
भगवान भी चुका न पाये ऋण l
माँ के दूध , त्याग – बलिदान का ll
सभ ने जताया ,
अच्छी शिक्षा , अच्छी संपत्ति ही जीवन है l
सच में ,
माँ के बिना सभ शून्य है ll
क्यूंकि ,
माँ ने कहा ” जय हिंद ” है l
शिक्षा घर से तो संपत्ति संस्कार से है ll
माँ ही शिक्षा , माँ ही संस्कार l
माँ के बिन बेसूद है संसार ll
चरणों के स्पर्श से दुवा – आशीर्वाद लिए l
फिर उसी माँ को वृद्धराश्रम छोड़ आए
बचपन में गिरा तो माँ ने संभाला l
जवानी में भटका तो माँ ने सुधारा ll
फिर क्यूँ वृद्धराश्रम को बनाया l
माँ से ही ” मात्र भूमि ” देखी l
माँ से ही ” जय हिंद ” सीखा ll
तो क्यूँ न बोलूँ ,
माँ से ही है बचपन मेरा ll
वाहिद खान पेंडारी
( हिंदी : प्राध्यापक ) उपनाम : जय हिंद
Tungal School of Basic & Applied Sciences , Jamkhandi
Karnataka
यह भी पढ़ें :-