मायड़ की ममता | Maayad ki Mamta
रब बुला दो
दुनिया से दिल भर गया रब बुला दो
दुनिया से दिल उठ गया अब बुला दो
बंद मुठ्ठी आया ख़ाली हाथ जाना जीना नहीं
दुनिया से दिल ऊब गया रब बुला दो
बिना लंगोटी नंगे बदन आया कफ़न ओढ़ जाऊंगा
दुनीया से दिल बदल गया रब बुला दो
छल कपट झपट कर धन दोलत जोडी जायदाद
दुनिया से दिल हट गया रब बुला दो
कभी कड़वा कभी मीठा कभी बाड़ा बोल बोले
दुनिया से दिल दब गया रब बुला दो
मोर बड़ा सुंदर मगर खाता ज़हरीला सांप पकड़
दुनिया से दिल टूट गया रब बुला दो
काजल रंग काला डाला जाता अपनी आंखों में
दुनिया से दिल रूठ गया रब बुला दो
गिरगिट शर्मा गई रंग बदलते देख मेरा ‘कागा’
दुनिया से दिल शर्मा गया रब बुला दो
नारी का सम्मान
कर सम्मान नारी का नारी मन प्यारी
बिना नारी जग सूना नारी मन दुलारी
नारी माता बहिन भूआ भाभी सास साली
नारी दादी बेटी भतीजी नारी घर बहुआरी
नारी घर आंगन की रंगोली भोली भाली
नारी खेत खलियान में केसर की क्यारी
नारी बिना वंश वृद्धि नहीं गृहस्थी गाथा
नारी फले फूले महके बग़िया की फ़ुलवारी
नारी नर की आन बान शान शोक्त
नारी सुंदर शक्ति भक्ति शहोरत शानदार भारी
नारी की निंदा नहीं करना नर नारायण
नारी से नर निपजे संत भग्वा धारी
नारी ने जन्म दिया राम कृष्ण को
नारी नव दुर्गा महिमा जग में न्यारी
नारी ऊमा लक्ष्मी ऋद्धि सिद्धि ममता क्षमता
नारी सीता राधा रुकमणी सरस्वती द्रोपदी गंधारी
नारी नाम मंदिर में आरती अर्चना प्रार्थना
नारी पूजा थाली कटोरी रोली मोली झारी
नारी रोशनी चांदनी बिजली बत्ती अंजली ‘कागा’
नारी नाम अनेक गूंजती हर घर किलकारी
रस-धारा
बिना प्रेम रस धारा मानव जीवन कैसा
बिना प्रेम विचार धारा मानव जीवन कैसा
मानव जीवन जीता छोड़ जाता अपने विचार
बिना प्रेम अश्रु धारा मानव जीवन कैसा
आंखें छलक पड़ती मिलन जुदाई विदाई पर
बिना प्रेम अमृत धारा मानव जीवन कैसा
मानव जीवन बड़ा अनमोल नहीं मोल तोल
बिना प्रेम गंग धारा मानव जीवन कैसा
गन्ना में गांठ होती चुस लेते लोग
बिना प्रेम मधुर धारा मानव जीवन कैसा
बांस में गांठ गड़बड़ सूखा रस हीन
बिना प्रेम शीतल धारा मानव जीवन कैसा
आग भरा फल फूल लगता नहीं ‘कागा’
बिना प्रेम नियम धारा मानव जीवन कैसा
अपना गिरेबान
उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबान में झांक
बुरा कहने से पहले अपने गिरेबान में झांक
कितना ख़ुद क़ाबिल कभी सोच विचार ग़ौर किया
नादान कहने से पहले अपने गिरेबान में झांक
कम्मियां खोजा करते रहते हो पराये पहलू की
नालायक़ बोलने से पहले अपने गिरेबान में झांक
कुत्ता भौंकता देख भिखारी को भीख मांगने पर
ह़स़द रखने से पहले अपने गिरेबान में झांक
नीम ह़कीम ख़त़रा जान हर किसी ज़ुबान पर
बेवजह बदनामी से पहले अपने गिरेबान में झांक
आईने में देखा करो हर रोज़ चेहरा ‘कागा’
बदस़ूरत कहने से पहले अपने गिरेबान में झांक
मानव-दानव
मानव है दानव नहीं मानवता के मूल्य पेहचान
आन बान शान मर्यादा मानवता के मूल्य पेहचान
मान एह़सान ईश्वर के दिया मानव चोला महान
सांच को आंच नहीं मानवता के मूल्य पेहचान
सोच विचार सुलभ दोनों बुरे अच्छे मन मस्तिक
कर ध्यान मिले ज्ञान मानवता के मूल्य पेहचान
मंद बुद्धि विकसित कर अपना दीपक स्वंय बन
अंधरे को दूर भगाना मानवता के मूल्य पेहचान
सुझाव देने वाले खू़ब मिलेगे सहयोग वाले कम
बुरा नहीं मान एह़सान मानवता के मूल्य पेहचान
लोगों का काम कहना साकार नाकार कहने दो
अपने विवेक पर विचार मानवता के मूल्य पेहचान
सीढ़ियां उतरने चढ़ने की दोनों ऊपर नीचे होती
तुम्हें क्या करना सुजान मानवता के मूल्य पेहचान
आपका भविष्य आपकी मुठ्ठी में बंद है ‘कागा’
क़िस्मत के किंवाड़ खोल मानवता के मूल्य पेहचान
पाप का घड़ा
पाप का घड़ा भर चुका फूटने की देर हैं
मालिक के घर अंधेर नहीं फूटने की देर है
पानी सिर तक पहुंच चुका इंसान बेरी इंसान का
ख़ूनी रिश्ता ख़तम हो चुका टूटने की देर है
अपने बन पराये बेठ गये गै़र की गोद में
चाल चेहरा अजनबी हो चुका रूठने की देर है
चापलूस चाटते थे पैरों के तलवे घुटनों बल चल
वो रहबर रहज़न हो चुका लूटने की देर है
कंधे से कंधा मिला कर चलने की क़स्में खाई
हाथ पकड़ना आफ़्त हो चुका छूटने की देर है
जी हु़ज़ूरी करते थे हरदम रंजो ग़म में ‘कागा’
अब आवाज़ ऊंचा हो चुका कूटने की देर है
हम हिंदू
गर्व से कहो हम हिंदू है
हिंदू धर्म हमारा हम हिंदू है
सिंधु तट पर वेदों की संरचना
ऋषियों मुनियों द्वारा वेदों की संरचना
गर्व से कहो हम हिंदू है
सिंधू दरिया सभ्यता संस्कृति का प्रमाण
मोअन जो दड़ो संस्कृति का प्रमाण
गर्व से कहो हम हिंदू है
सनातन की नींव सिंधु घाटी महान
ऊंच नीच नहीं सिंधु घाटी महान
गर्व से कहो हम हिंदू है
सिंह बकरी पानी पीते एक घाट
प्रेम दया का मिलाप एक घाट
गर्व से कहो हम हिंदू है
वेदों में रचे श्लोक संस्कृत भाषा
जीवन की शुद्ध शेली संस्कृत भाषा
गर्व से कहो हम हिंदू है
सिंधु देश विशाल धनवान जन गण
वाणिज्य कृषि युक्त सम्पन्न जन गण
गर्व से कहो हम हिंदू हैं
सिंधु देश की सिंधी राष्ट्र भाषा
सिंधु से हिंदू बना हिंदी भाषा
गर्व से कहो हम हिंदू है
मोअन जो दड़ो खुदाई पुकारती है
मिले अवशेष चिल्ला कर पुकारती हैं
गर्व से कहो हम हिंदू है
सीमाऐं सुरक्षित थी हिंदू साम्राज्य था
हिंदू राजा न्याय प्रिय साम्राज्य था
गर्व से कहो हम हिंदू है
अगड़ा पिछड़ा भेद भाव छूआ छूत
ऊंच नीच नहीं कोई प्रेत भूत
गर्व से कहो हम हिंदू है
ढौंग पाखंड नौटंकी घमंड घपला नहीं
शांति का बिगुल बजता घपला नहीं
गर्व से कहो हम हिंदू है
सिंधु धारा रस अमृत धारा बहती
‘कागा’ कल-कल करती धारा बहती
गर्व से कहो हम हिंदू है
दिव्यांग
दिव्यांग पर दया कर बंदा दुआ देगा
दिव्यांग पर ह़य्या कर बंदा दुआ देगा
शरीर का अंग भंग क्षति ग्रसित माज़ूर
यतीम पर दया कर बंदा दुआ देगा
सलामत हो ख़ुश रखे ख़ालिक़ मालिक मेहरबान
ग़रीब पर दया कर बंदा दुआ देगा
बीज बोना अनाज का भंडार भरेगा भरपूर
घायल पर दया कर बंदा दुआ देगा
मूज़ी मर्ज़ में मुब्तला कराह रहा पीड़ित
दर्दमंद पर दया कर बंदा दुआ देगा
मुफ़ल्सी की मार से बीन रहा कचरा
भूखे पर दया कर बंदा दुआ देगा
पानी की तलाश में तड़प रहा प्यासा
प्यासे पर दया कर बंदा दुआ देगा
दरिंदे नोच रहे बहिन बेटियां सरे आम
कमज़ोर पर दया कर बंदा दुआ देगा
जिसका कोई धणी धोरी नहीं जहान में
लावारिस़ पर दया कर बंदा दुआ देगा
जोश जवानी पर ग़ुरूर नहीं कर ‘कागा’
लाचार पर दया कर बंदा दुआ देगा
बहुजन समाज
बहुजन समाज का बोल बाला था सिंध में
सनातन धर्म का बोल बाला था सिंध में
मोअन जो दड़ो खुदाई में मिले पुख़्ता प्रमाण
सनातन धर्म सम्पूर्ण सम्पन्न था मिले पुख़्ता प्रमाण
कला संस्कृति सभ्यता संस्कार आज कल खंडहर खड़े
मंदिर पूजा पाठ ठाठ बाट देखो खंडहर खड़े
टूटे फूटे मकान दुकान गांव गलियां पक्की सड़कें
कूड़ा कचरा का नाम नहीं साफ़ सुंदर सड़कें
उडेरो लाल झूले लाल की जयकार होती हरदम
पीर पिथोरो देवल माता की जयकार होती हरदम
वस्त्र का ताना बाना कताई बुनाई का हुनर
सिंध की आन बान शान सुंदर नारी नर
‘कागा’ मान सम्मान मर्यादा गरिमा का तोड़ नहीं
प्रेम वासना भावना मेहमान नवाज़ी का जोड़ नहीं
पाप
अगर पेट नहीं होता पाप नहीं होते
पेट पाप की जड़ पाप नहीं होते
भूख प्यास नहीं लगती करने पड़ते प्रयास
छीना झपट छल कपट पाप नहीं होते
कोई किसी का सगा नहीं दग़ा बाज़
प्यार नफ़रत सब ग़ायब पाप नहीं होते
धर्म जाति ऊंच नीच भेद भाव नहीं
रंजो ग़म ख़ुशी मुस्कान पाप नहीं होते
सेठ शाहूकार अमीर ग़रीब झौंपड़ी राज मह़ल
इंसान के बीच खाई पाप नहीं होते
कोई अपना पराया ग़ैर नही सब बराबर
लोम लालच मोह माया पाप नहीं होते
हार जीत रीत रस्मो रिवाज रवायत ख़तम
कागा कोयल हंस बगुला पाप नहीं होते
रस्सी जल गई
रस्सी जल गई छल बल नहीं गया
एंठन सदा सहारा छल बल नहीं गया
करेला को सींचा दूध घी शहद से
कड़वाहट रही बरक़रार छल बल नहीं गया
टेढ़ी पूंछ कुत्ते की डाली नली में
रखी रात भर बांध बल नहीं गया
गधे को नहाया गंगा जल गुलाब से
लोट पोट कर मेल बल नहीं गया
ऊंट छोड़ा गेहूं की खेत में चरने
खाता कंटीली झाड़ी स्वभाव बल नहीं गया
हंस बगुला रंग एक बसते समुंदर किनारे
बगुला गटके मच्छी छल बल नहीं गया
कोयल काली बोल मधुर कड़वा बोल ‘कागा’
अपनी आ़दत से मजबूर बल नहीं गया
दाता
देता हैं दाता तब छप्पर को फाड़ देता है
लेता है दाता तब क़बर में गाड़ लेता हैं
रख भरोसा मालिक पर बड़ा दयालू दान दाता वीर
पल भर में भरे भंडार दयालू दान दाता वीर
दर्द पीड़ा दूर करे बिना किसी भेद भाव प्रभाव
सब की सुनता फ़रियाद बिना किसी भेद भाव प्रभाव
कीड़ी को कण हाथी को मण चिड़िया को चुग्गा
अजगर को भर पेट भोजन पंछी को बढ़िया चुग्गा
दुआ मांग कर देख सच्चे शुद्ध मन वचन से
करता मुराद पूरी नेक नियत नीति मन वचन से
कण कण में बसता बिना इजाज़त नहीं हिलते पत्ते
रोम रोम में बसता हवा उनकी हिलाती हरदम पत्ते
‘कागा’ क़ुदरत की करामात रब की रज़ा बंदों पर
गूंगे बहरे लूले लंगड़े अंधे नेक नादान बंदों पर
सियास्त
आज कल की सियास्त विरास्त हो गई है
दादा बेटा पोता सियास्त विरास्त हो गई है
झमूरी निज़ाम में झंझट छल कपट झूठ झांसे
मिंयां बीवी साली सियास्त विरास्त हो गई है
अकस़रियत वाले नज़र अंदाज अकलियत वाले सरताज शह
ख़ानदान में खूबसूरत सियास्त विरास्त हो गई है
पीढ़ी दर पीढ़ी रस्मो रिवाज रवायत जारी बदस्तूर
सास ससुर साले सियास्त विरास्त हो गई है
ज़ोर ज़बरदस्ती दहशत ख़ौफ पैदा कर गुमराह करते
चापलूस चाटूकार चौकीदार सियास्त विरास्त हो गई है
सर सब्ज़ बाग़ बग़ीचा का लालच देकर ‘कागा’
करते ख़्वाब क़तल सियास्त विरास्त हो गई है
संक्षिप्त पाक यात्रा
मातृभूमि भ्रमण 2024
मेघवाल समाज
जुदाई के ज़ख्म
जुदाई एक नासूर
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बंटेंगे तो कटेंगे
बंटेंगे तो कटेंगे एकता में शक्ति है
छंटेंगे तो कटेंगे नेकता में भक्ति हैं
वर्ग वर्ण जात पात ऊ़ंच नीच रोग
विशेष रख विवेक एकता में शक्ति है
धर्म मज़हब छूआ छूत का भूत सवार
बंदा बन नेक एकता में शक्ति है
मत भेद मन भेद मिटा मन से
इंसान बन एक एकता में शक्ति हैं
समाज में व्याप्त कुरीति को दूर कर
कम्मियों को देख एकता में शक्ति है
परिश्रम कर खून पसीने की कमाई पगार
कर देख रेख एकता में शक्ति है
कथनी करनी में अंतर नहीं रखना
लिखा विधाता लेख एकता में शक्ति है
जेसी करनी वेसी भरनी नियत जेसी मुराद
कर्म लिखी रेख एकता में शक्ति है
बोया बीज बबुल आम नहीं मिलता ‘कागा’
ईश्वर राखे टेक एकता में शक्ति है
साकार सोच
गली सड़ी सोच आगे बढ़ने नहीं देती
पैर पड़ी मोच आगे बढ़ने नहीं देती
अच्छी ओछी सोच का अलग निकले नतीजा
बुरी बिगड़ी सोच आगे बढ़ने नहीं देती
सादा जीवन उच्च विचार ऊंची जाती सीढ़ियां
कट्टर कड़ी सोच आगे बढ़ने नहीं देती
पीढ़ियां गुज़र गई परम्परा चली आई पुरानी
ओछी उजड़ी सोच आगे बढ़ने नहीं देती
जाति की जड़ें गहरी उख़ड़ नहीं सकती
ज़ंजीर जकड़ी सोच आगे बढ़ने नहीं देती
हाथों में हथकड़ियां पैरों में बेड़ियां मज़बूत
उल्टी उमड़ी सोच आगे बढ़ने नहीं देती
सीढ़ियां ऊपर नीचे जाती उतार-चढ़ाव ‘कागा’
ख़राब खड़ी सोच आगे बढ़ने नहीं देती
जात-पात
रंग रूप की कोई जाति नहीं होती
ख़ून होता लाल की जाति नहीं होती
मालिक ने इंसान पैदा किया एक समान
हवा गर्म ठंडी की जाति नहीं होती
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई जैन बौध धर्म
आग धरती आसमान की जाति नहीं होती
बंदा किस बूंद से पैदा हुआ बताओ
भूख प्यास पानी की जाति नहीं होती
पैड पौधों पर पैदा होते फल मेवा
किसी रस स्वाद की जाति नहीं होती
काम क्रोध लोभ लालच मोह माया अहंकार
इंद्रधनुष अनाज बारिश की जाति नहीं होती
ईंट कंकर पत्थर रोड़ा गारा मौत जीवन
रोना धोना हंसना की जाति नहीं होती
इंसान का अंग उज़्ज़वा प्रत्या-रोपण होता
मिलता नया जीवन की जाति नहीं होती
इंसान चलता फिरता जनाज़ा जब तक जान
दम निकला बेजान की जाति नहीं होती
प्यार नफ़रत ईर्ष्या की आग भभक ‘कागा’
जोश जुनून जज़्बात की जाति नहीं होती
चाल-बाज़
चाल बाज़ की चाल चल गई
दग़ा बाज़ की दाल गल गई
अमानत में ख़्यानत करते हम ख़ामोश
आ़दत से मजबूर ईमानदारी खल गई
लोग लाचार हो गये ओढ़ नक़ाब
मुंह पर ताला उम्र ढल गई
बार-बार धोखा खाने के बावजूद
ह़सद की ह़द दिल जल गई
आंधी त़ूफ़ान आते रहते मौसम पर
सेलाब की आफ़्त आते टल गई
घूस घपला घोटाला का घाल मेल
मोह़ब्त में मिलावट दिल मचल गई
नफ़रत की आग भभक रही बेक़ाबू
शोला बन कलेजा मेरा कुचल गई
तबीब बन साज़िश करते झोला छाप
नश्तरों पर ज़हर मरहम मल गई
बदन बेक़रार बेबस करार नहीं ”कागा’
मुस़ीबत महके फूल को मसल गई
बग़लगीर
बाद में आये वो बग़लगीर बन गये
याद नहीं आये वो बग़लगीर बन गये
ठोर ठिकाना नहीं था कोई अपना आशियाना
अपना ज़मीर बेच वो अमीर बन गये
चुग़ल चापलूस चाटूकार की फ़ित़रत जिनका पैशा
चमचा गिरी कर वो वज़ीर बन गये
तरक़ीब गिला करने का बद-तमीज़ मिज़ाज
तारीफ़ कर तगड़ी वो मुशीर बन गये
हस़द की आग में सुलग घोल ज़हर
प्याला पिला कर वो अकसीर बन गये
दग़ा बाज़ दिल बेदर्द दिमाग़ी तवाज़न रहज़न
चाल बाज़ चेहरा वो तक़दीर बन गये
ओढ़ नक़ाब नफ़रत का नौटंकी करते नक़ली
फूट डाल फ़ालतू वो तास़ीर बन गये
सच्चाई का क़द्र नहीं बुराई का ज़माना
ग़ैरत ज़रा नहीं वो बेज़मीर बन गये
झूठ फरेब ठगी का बोल-बाला ‘कागा’
गुमराह करते ग़रीब वो आलमगीर बन गये
दिया जला
दिया जला दिल में जगमग जाये जीवन
हर रोज़ हो दीवाली जगमग जाये जीवन
आत्म दीपो भव बुद्ध का ज्ञान उपदेश
एक दिया विद्या का जगमग जाये जीवन
लक्ष्मी का वाहन उल्लू कमल आसन कोमल
लक्ष्मी पूजन चित्त चंचल जगमग जाये जीवन
हंस वाहनी सरस्वती विधा वीणा वादनी महान
दमक महक चमक निराली जगमग जाये जीवन
दीवाली से गहरा नाता गोतम महावीर का
राम लोट आये अयोध्या जगमग जाये जीवन
सनातन धर्म में सीख पावन पर्व प्रकश
धनतेरस गोवर्द्धन पूजा करें जगमग जाये जीवन
रूप चौदस भाई दूज दीवाली का मेल
किसान खेत खलियान ख़ुशी जगमग जाये जीवन
घर आंगन की होती सा़फ़ स़फ़ाई सुचारु
शीत ऋतु होता आगमन जगमग जाये जीवन
भाई-चारा होता पुनर्जन्म आदान प्रदान ‘कागा’
बधाइयों का तांता लगा जगमग जाये जीवन
दीपक
मैं दीपक हूं मेरे तले अंधेरा
देता रोशनी हूं मेरे तले अंधेरा
हवा से दुश्मनी नहीं कोई अ़दावत
बुझा देती मुझे मेरे तले अंधेरा
इंसान भी बेवफ़ा बुझा देता मुझे
फूक मार स़ुबह़ मेरे तले अंधेरा
अंधेरा छुप जाता मेरे ख़ोफ़ से
ख़ुद नीचे ख़ामोश मेरे तले अंधेरा
अंधेरा नहीं देख पाई आंखें मेरी
खोज रही अधूरी मेरे तले अंधेरा
मैं जल करता उजाला घर का
क़द्र क़ीमत नहीं मेरे तले अंधेरा
एह़सान फ़्रामोश इंसान मत़लब का यार
भलाई बदले बुराई मेरे तले अंधेरा
दरख़्त देते मीठा फल ठंडी छाया
काटते कुल्हाड़ी से मेरे तले अंधेरा
नदी चलती कल कल प्यास बुझाती
कूड़ा फेंकते अंदर मेरे तले अंधेरा
दीप माला सजती दीपावली पर्व पर
पावन देता प्रकश मेरे तले अंधेरा
मेरी प्रबल इच्छा रोशन ग़रीब झौंपड़ी
जगमग कर उजाला मेरे तले अंधेरा
कागोल चखने बुलाते प्यार से ‘कागा’
फिर उड़ा देते मेरे तले अंधेरा
बुत्त प्रस्त
बंदा बुत्त प्रस्त हर धर्म मज़हब वाला
किसी के हाथ तस्बीह किसी के माला
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे बने पत्थरों के
बंदा बुत्त प्रस्त ईंट कंकर गारा वाला
किसी ने कलश मीनार गुम्बद काबा बनाये
कोई कर वज़्ज़ू नमाज़ अदा करता आला
कोई बजाता घंटा शंख करता पूजा पाठ
मूर्ति को नत मस्तक जला दीपक कर उजाला
हर आदम जात बुत्त मजस्मा ज़िंदा दिल
करें अदब एहतराम ह़ाज़िर नाज़िर गोरा काला
मज़ार दरगाह में चादर ओढे सोये ओलिया
मूर्तयां सज धज गहनों से मंदिर ताला
ज़िंदा बुत्त मुर्दा बुत्त अ़कीदा एतमाद इबादत
मुरीद मुर्शीद गुरू चेला चाकर ज़ेर बाला
मुलां मोल्वी संत महंत सब बुत्त बंदा
मोमन पोप पादरी पाक दामन रुतब्बा वाला
आशिक माशूक बुत्त प्रस्त इशक़ अल्ह़दा ‘कागा’
मिज़ाजी मजाज़ी ह़क़ीक़ी देता पैग़ाम प्यार वाला
बुत्त प्रस्त
बंदा बुत्त प्रस्त हर धर्म मज़हब वाला
किसी के हाथ तस्बीह किसी के माला
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे बने पत्थरों के
बंदा बुत्त प्रस्त ईंट कंकर गारा वाला
किसी ने कलश मीनार गुम्बद काबा बनाये
कोई कर वज़्ज़ू नमाज़ अदा करता आला
कोई बजाता घंटा शंख करता पूजा पाठ
मूर्ति को नत मस्तक जला दीपक कर उजाला
हर आदम जात बुत्त मजस्मा ज़िंदा दिल
करें अदब एहतराम ह़ाज़िर नाज़िर गोरा काला
मज़ार दरगाह में चादर ओढे सोये ओलिया
मूर्तयां सज धज गहनों से मंदिर ताला
ज़िंदा बुत्त मुर्दा बुत्त अ़कीदा एतमाद इबादत
मुरीद मुर्शीद गुरू चेला चाकर ज़ेर बाला
मुलां मोल्वी संत महंत सब बुत्त बंदा
मोमन पोप पादरी पाक दामन रुतब्बा वाला
आशिक माशूक बुत्त प्रस्त इशक़ अल्ह़दा ‘कागा’
मिज़ाजी मजाज़ी ह़क़ीक़ी देता पैग़ाम प्यार वाला
रिश्ता
यह रिश्ता क्या कहलाता है ज़रा बताओ
यह वास्ता क्या कहलाता है ज़रा बताओ
ख़ून ख़ानदान का तालुक़ नहीं मैल मिलाप
गहरा नाता क्या कहलाता हैं ज़रा बताओ
कभी सपने में नहीं देखा जिसका चेहरा
अंतर आहिस्ता क्या कहलाता हैं ज़रा बताओ
अनजान गांव गली अड़ोस पड़ोस सब अजनबी
रंगीन रास्ता क्या कहलाता हैं ज़रा बताओ
दो दिलों का मिलन हो गया चुपके
नया रिश्ता क्या कहलाता है ज़रा बताओ
ख़ून के रिश्ते से एह़सास बेहतर ‘कागा’
यह नाश्ता क्या कहलाता है ज़रा बताओ
कागा
उड़ चल कागा अपने वत़न यह देश पराया (टेक)
मिला मान सम्मान अपमान इज़्जत आबरू प्रेम घ्रणा
बांध बिस्तर बोरिया कर जतन यह देश पराया
बच्चपन जवानी बुढ़ापा बीता आन बान शान से
कभी बरसे पत्थर कभी रतन यह देश पराया
आज़ाद पंछी बन कर उड़ा करते इधर उधर
कभी मेला कुचेला तन मन यह देश पराया
मां की कोख में नौ माह बंद बिताया
पहला पिया दूध मां स्तन यह देश पराया
छप्पन भोग खाया खोया गोफन में जीवन अनमोल
काम क्रोध में किया पतन यह देश पराया
घुटनों बल चले गिड़गिड़ा कर गिरते उठते सम्भल
करते रहे हर बार प्रयत्न यह देश पराया
किसी ने काला कलूटा कहा बोल बाड़े कड़वे
किसी ने कहा शुभ वचन यह देश पराया
यह देश मुसाफ़िर खाना आना जाना होता रहता
किसी का नहीं अपना वत़न यह देश पराया
नाम कमाया दोलत दाम नहीं जीवन में ‘कागा’
मोह माया छोड़ चल वत़न यह देश पराया
चुनाव
राम रावण दोनों खड़े किसको चुनना हैं
कंस कृषण दोनों खड़े किसको चुनना हैं
पांडव कौरव दोंनों खड़े किसको चुनना हैं
सीता सुपर्णखा दोनों खड़ी किसको चुनना हैं
केकेई कोशल्या दोनों खड़ी किसको चुनना हैं
सच्च झूठ दोनों खड़े किसको चुनना हैं
गुण अवगुण दोनों खड़े किसको चुनना हैं
ख़ुशबू बदबू दोनों खड़े किसको चुनना हैं
नेकी बदी दोनों खड़ी किसको चुनना हैं
बुराई अच्छाई दोनों खड़ी किसको चुनना हैं
मीठा कड़वा दोनों खड़े किसको चुनना हैं
काला गोरा दोनों खड़े किसको चुनना हैं
शेर कुत्ता दोनों खड़े किसको चुनना हैं
सूरज चांद दोनों खड़े किसको चुनना हैं
अमृत विष दोनों है किसको चुनना हैं
‘कागा’ उल्लू दोनों है किसको चुनना हैं
दीपोत्सव
आया दीपोत्सव पावन मन भावन त्यौहार
दीपक जगमग करते मन भावन त्यौहार
कार्तिक अमावस जब चांद गया छिप
दीपक करे उजाला मन भावन त्यौहार
बच्चे बोले दीवाली हर गली गलियारे
आंगन सजाई रंगोली मन भावन त्यौहार
बुढ़े बुज़र्ग करते याद यादें पुरानी
सुनाते अपने संस्मर्ण मन भावन त्यौहार
अन्नदाता चित्त प्रसन्न धान खेत खलियान
धन तेरस ख़रीदारी मन भावन त्यौहार
अन्न कूट की तैयारी पर्व पावन
चेहरा चमक उठा मन भावन त्यौहार
दीपगली पर्व प्रकाश का अंधेरा भागा
जागा किसान सवेरे मन भावन त्यौहार
नन्हे मुन्हें जलाते फुलझड़ियां ख़ुशी से
युवा फोड़े फटाका मन भावन त्यौहार
परम्परा गत वेषभूषा में सज धज
गोरी लिप्ट घूंघट मन भावन त्यौहार
नाक नथुनी पग पायल बाजे घुंघरू
बनाये छपन्न भोग मन भावन त्यौहार
सांझ ढली शुभ महुर्त रात्रि ‘कागा’
करते लक्ष्मी पूजन मन भावन त्यौहार
ह़ुज़ूर
जब याद आये मेरी याद करना ज़रूर
जब याद सताये मेरी याद करना ह़ुज़ूर
दिल देकर दूर हुए वक़्त का तका़ज़ा
जब सुबक सिसकियां आये याद करना ज़रूर
मेरी दिल में बसेरा तेरा प्रिय मेरे
जब ह़ल्क हिचकियां आये याद करना ज़रूर
अकस़र लोग भूल जाते नये मिलने पर
जब भर अखियां आये याद करना ज़रूर
ख़ुद ग़र्ज़ गिड़गिड़ाते तलवे चाटते चरण चूम
जब याद एह़सान आये याद करना ज़रूर
एह़सान फ़्रामोश बन भूल मत जाना दोस्त
जब ज़रा एह़सास आये याद करना ज़रूर
ज़िंदगी की शाम हो चुकी रात अंधेरी
जब दिया बुझ जाये याद करना ज़रूर
चाल चेहरा चित्त चित्र चरित्र पवित्र रखना
जब दाग़ लग जाये याद करना ज़रूर
बंद मुठ्ठी आया खुले हाथ जाना लोट
जब वादा याद आये याद करना ज़रूर
दो गज़ ज़मीन दो गज़ कफ़न कमाया
जब सब छूट जाये याद करना ज़रूर
सारा संसार मकड़ी का जाला जंजाल ‘कागा’
जब ईश्वर याद आये याद करना ज़रूर
जागो बहुजन जागो
जागो बहुजन जागो भागो मंज़िल की ओर
हुआ स़ुबह़ सवेरा भागो मंज़िल की ओर
राह के राही चल पड़े गठरी उठाये
नींद छोड़ कर भागो मंज़िल की ओर
मुर्ग़ा बोला अज़ान हुई बजा मंदिर घंटा
दुनिया वाले जागे भागो मंज़िल की ओर
मौसम बड़ा सुहाना है राह कंटीली रेतीली
पहन पग पैजार भागो मंज़िल की ओर
शिक्षा संगठन संघर्ष का मूल मंत्र पढ़ाया
जय भीम नारा भागो मंज़िल की ओर
बाबा ने कहा था मुझे धोखा दिया
लिखे पढ़ों ने भागो मंज़िल की ओर
कारवां मेरा आगे बढ़ाना पीछे धकेलना नहीं
आगे लेकर चलो भागो मंज़िल की ओर
अम्बेडकर के नाम की दुकानें खुल गई
साज़ो सामान नहीं भागो मंज़िल की ओर
अपना धर्म सौंपा राजनीति दल बना कर
संविधान जेसा शस्त्र भागो मंज़िल की ओर
तितर बितर होकर बिखर गये गुटों में
इधर उधर भटक भागो मंज़िल की ओर
अदरक टुकड़ा आया हाथ पंसारी बन बेठे
आधा अधूरा ह़कीम भागो मंज़िल की ओर
बाज़ बनना बाक़ी अभी हो मह़ज़ ‘कागा’
सीमा नहीं लांघो भागो मंज़िल की ओर
आ़म अ़वाम
अब आ़म अ़वाम बदलाव चाहती है
अब अलगाव नहीं लगाव चाहती है
धर्म मज़हब की आड़ में गुमराह
नफ़रत से तोबा चाव चाहती है
लज़ीज़ त़ाम खा तंग हो गई
अब ह़ल्वा नहीं पुलाव चाहती हैं
जात पात भेद भाव में भुलाया
छूआ छूत नहीं जुड़ाव चाहती है
जाति धर्म मज़हब में बांट कर
किया बदनाम बेशक प्रभाव चाहती है
धन दोलत कसोटी नही ओक़ात की
प्यार का त़ोह़फ़ा स्वभाव चाहती है
बिना इंसानियत इंसान नहीं ह़ेवान है
ख़ूब ऊब चुकी भाव चाहती है
तेरना सिखाने के बहाने डुबोया गया
डुबकी से डर नाव चाहती है
अगल बगल में बेठ बरग़लाते ‘कागा’
झूठा झांसा नहीं दाव चाहती है
ईश्वर
ईश्वर का अपना कोई धर्म नहीं
ईश्वर का अपना कोई कर्म नहीं
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई जैन बौध
सब समान अपना कोई धर्म नहीं
जल थल अग्न गगन पवन पांच
तत्व पुतला अपना कोई धर्म नहीं
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे स्तूप में
हरदम ह़ाज़िर अपना कोई धर्म नहीं
चींंटी हाथी घोड़ा शेर में रहता
परिंदों में अपना कोई धर्म नहीं
ख़ुदा गाड महावीर बुद्ध वाह गुरु
ख़ुद बनता अपना कोई धर्म नहीं
मुलां मोल्वी संत महंत महात्मा पूजारी
फ़क़ीर फक्कड़ अपना कोई धर्म नहीं
राम रह़ीम पोप पैग़म्बर अवतार आप
रुह़ आत्मा अपना कोई धर्म नहीं
बाग़ बग़ीचा स़ेह़रा रेगस्ता रण सागर
पहाड़ पठार अपना कोई धर्म नहीं
चांद सितारों सूरज दिन रात नींद
भूख प्यास अपना कोई धर्म नहीं
ऊंच नीच भेद भाव छूआ छूत
मानव उपज अपना कोई धर्म नहीं
सबका मालिक ख़ुद ख़ून रंग लाल
सांसें बराबर अपना कोई धर्म नहीं
कण-कण ज़र्रे-ज़र्रे में मौजूद
ह़ाज़िर नाज़िर अपना कोई धर्म नहीं
कीड़ी को कण हाथी को मण
रिज़्क़ देता अपना कोई धर्म नहीं
सर्व धर्म समाया जेसे दूध घी
अमृत विष अपना कोई धर्म नहीं
कायनात पर क़ब्ज़ा कमान अपनी ‘कागा’
जीवन मौत अपना कोई धर्म नहीं
राम-रावण
हर मानव में राम रावण दोनों मोजूद
राम जागा रावण भागा राम का वजूद
सोने की लंका रावण की राम बनवासी
भाई लक्ष्मण संग सीता संगनी सदा मोजूद
केकेई में रावण जागा राम मिला बनवास
भरत में राम जागा भागा पीछे मोजूद
खड़ाऊ रख राज गदी पर किया राज
निमित मात्र राजा बने रहे राम मोजूद
मारीच में रावण जागा भागा राम कुटिया
स्वर्ण हिरण बना मोह माया रूपी मोजूद
बाल राज योगी स्त्री चार हठ भारी
सीता ने मांगा हिरण लक्ष्मण रहे मोजूद
राम ने उठाया तीर कमान मारीच मारने
चल गया बाण मारीच मरा रावण मोजूद
लक्ष्मण रेखा खींच निकला राम सहायता हेतू
सीता अपहरण रावण द्वारा नहीं कोई मोजूद
बाली में रावण जागा सुग्रीव में राम
हनुमान राम सेवक बने अंगद रहे मोजूद
राम जागा रोम -रोम हनुमान के मन
कूदा समुंदर पहुंचा लिखा जहां सीता मोजोद
रावण को मार गिराया राम अवतार ने
लोटे सकुशल अयोध्या आम जन रहा मोजूद
सीता की हुई अग्नि परीक्षा मनाई दीपावली
हर घर आंगन दीपक जले महक मोजूद
दया नाम राम का रावण नाम पाप
हर साल जलाते रावण दोबारा होता मोजूद
राम नाम को रट मानव घट ‘कागा’
रावण का अंत हो राम रहे मोजूद
दीवाली
दीपावली पर्व प्रकश दीप माला करे उजाला
जगमग कर जले दीपक गांव गली उजाला
चौदह वर्ष वनवास काट आया राम अयोध्या
घर आंगन सखी सुहागन संतोष मन उजाला
संग सीता लक्ष्मण भाई रावण किया संहार
अवध नगरी में जशन मनाया कर उजाला
भरत शत्रुघन स्वागत में आतुर पलक बिछा
राज महल में दीपक लड़ी उमड़ा उजाला
कोशल्या केकेई समित्रा मंथरा कर रही सत्कार
धूम मची संग शहनाई सारंगी उजास उजाला
फुलझड़ियां झिल मिल करती प्रकाश चारों ओर
बच्चे बुढ़े मन चित्त मुस्काया आंखों उजाला
नर नारी मन मस्त दास दासी दरबान
पंडित पूजारी संत साधू हर मंदिर उजाला
गाते मंगल गीत गूंज उठा सारा गगन
भंगड़े लंगडे़ नाचने लगे आत्मा में उजाला
बधाई का तांता लगा रंग मंच पर
राम लीला रास लीला समान अलोकिक उजाला
हंस हंसनी मोर मोरनी मोहित कोयल ‘कागा’
चारों वर्ण ने मनाया दीपोत्सव कर उजाला
बेटी
बेटी कलेजे का टुकड़ा लाड़ली
बेटी चंद्रमा सा मुखड़ा लाड़ली
बेटी कोमल कली फूल की
पंखुड़ी गुलाब की लचक लाड़ली
मां की ममत चंचल चुलबुली
चहकती चिड़िया गुड़िया प्यारी लाड़ली
पापा की परी उड़ान ऊंची
बाबुल की बग़िया बुलबुल लाड़ली
सूरज की पेहली किरन पड़ती
घर आंगन लाड़ लड़ाती लाड़ली
पीहर ससुराल दो कुल संवारे
लब लाली सोलह श्रृंगार लाड़ली
लाल बिंदिया ललाट पग पायल
बाजे घुंघरू छम-छम लाड़ली
ऋद्धि सिद्धि ममता की मूर्ति
शुभ लाभ शांति लक्ष्मी लाड़ली
कोख में नहीं कर क़तल
जीजल बेटी घर की लाड़ली
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ संदेश
बेटी सुख संसार बेटी लाड़ली
बेटी आंखों का चमकता तारा
बिना बेटी घर सूना लाड़ली
सीता सावित्री पार्वती लक्ष्मी राधा
सरस्वती द्रोपदी करो पूजा लाड़ली
कोयल जेसी मीठी वाणी ‘कागा’
मन तन मोहनी मुस्काती लाड़ली
हरकत में बरकत
हलचल जारी रख ह़रकरत में बरकत है
हलचल जारी रख ह़िजरत में बरकत है
रुका पानी हदबू कर देता कीचड़ बन
हलचल जारी रख कसरत में बरकत है
चलती का नाम गाड़ी खड़ी कहते खटारा
हलचल जारी रख ह़सरत में बरकत है
फूल खिलते चमन में रंग बरंगी ख़ुशबूदार
हलचल जारी रख ह़क़ीक़त में बरकत है
बनावटी फूल रिश्तों पर यक़ीन नहीं करना
हलचल जारी रख शिरकत में बरकत है
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे में माथा टेक
हलचल जारी रख अ़क़ीदत में बरकत है
जाति धर्म मज़हब में तक़सीम नहीं होना
हलचल जारी रख अकस़रियत में बरकत है
मीठा निगल लेते कड़वा उगल देते लोग
हलचल जारी रख फ़ज़ीलत में बरकत है
ऊबड़ खाबड़ डगर राह चलते बिना रहबर
हलचल जारी रख नस़ीह़त में बरकत है
वालदीन की ख़िदमत कर दिलो जान से
हलचल जारी रख वस़ियत में बरकत है
मेह़नत कर कमाई कर ख़ून पसीने की
हलचल जारी रख मशकत में बरकत है
मुफ़्त ख़ोर नहीं बनना अजगर की त़रह़
हलचल जारी रख उजरत में बरकत है
सियास्त में सगा नहीं सब दग़ा बाज़
हलचल जारी रख शरारत में बरकत है
हवा पानी धरती आसमान मौसम बदल जाते
हलचल जारी रख हरारत में बरकत है
गिरगिट रंग बदल देता हवा के साथ
हलचल जारी रख ह़ेसि़यत में बरकत है
कोबरा बदल लेता केंचुली साल में ‘कागा’
हलचल जारी रख फ़ित़रत में बरकत है
बेरोज़गारी
बेरोज़गारी बढ़ रही है बेरोज़गार बेशुमार
महंगाई बढ़ रही है अपराध बेशुमार
दर दर भटक रहे इधर उधर
जवान रोज़गार की तलाश इधर उधर
लिख पढ़ लाचार बन गये बेरोज़गार
नशेड़ी अपराधी चोर लुटेरे बने बेरोज़गार
डिगरी डिपलोमा धारी मिलता नहीं धंधा
करते आत्म हत्या लगा फांसी फंदा
आटा दाल चावल तेल सब्जी साग
मिर्च नमक मस़ाला महंगा सब्जी साग
पापी पेट चिपक गया पीठ से
दुबला पतला बदन मिला पीठ से
बच्चे बिलबिला उठे भूख से बेह़ाल
क़दम लड़खड़ा रहे कमज़ोर बड़े निढाल
किसान कामगार मजदूर मजबूर मन माज़ूर
ग़रीब का गुज़र सफ़र मुश्किल माज़ूर
जाड़े में जकड़ ठिठुर ठंड से
कांपता हाड़ मांस ठिठुर ठंड से
तपती धूप दुपहरी लू के थपेड़े
आग के शोले आंधी के थपेड़े
बारिश की झड़ी गर्जते बादल आकाश
चमकती बिजली चका-चौंध करती प्रकाश
बिना पैजार नंगे पैर बदन चीत्थड़े
करते मेह़नत मज़दूरी फटे बदन चीत्थड़े
किसान को मूल्य नहीं फ़स़ल का
मुआवज़ा नहीं मिलता ख़राब फ़स़ल का
घुट घुट कर मरता किसान कामगार
धणी धोरी नहीं कोई मदद-गार
‘कागा’ यदा-कदा प्रकृति रूठ जाती
मुंह आया निवाला छीन लूट जाती
इरादा
इरादा छोड़ दिया ख़ुदकुशी का अपनों से जलाते देख
इरादा छोड दिया ख़ुदकुशी का अपनों से दफ़नाते देख
बड़ा मलाल नाज़ो फ़ख़र ग़ुरूर ग़ालब था अपनों पर
इरादा छोड़ दिया अपने घर से बेदख़ल होते देख
रिश्ता नाता दुनिया में मत़लबी जब तलक ज़िंदा आदमी
इरादा छोड़ दिया जहान से रुख़्स़त बेइज़्ज़त होते देख
ज़रा भी ग़ैरत नहीं आई बद-सलूकी करते कोई
इरादा छोड़ दिया प्यार करना बद-तमीज़ी होते देख
ख़ून पसीना बहाया दोलत जोड़ी कोल्हू का बैल बन
इरादा छोड़ दिया स़िला की बजाय सज़ा देते देख
अरथी सजाई चित्त बनाई लकडियों को जमा कर ढेर
इरादा छोड़ दिया मरने का अपनों से फूंकता देख
क़बर खोद दो गज़ जमीन में दो ग़ज़ कफन
इरादा छोड़ दिया बालू मिट्टी में दफ़न करते देख
क़ुदरत का क़ानून क़बूल है जब मदऊ करे मोला
इरदा छोड़ दिया ख़्याल बदल कर दलाली करते देख
इंसान का इंसान से दोगला रुख़ रंजो ग़म ख़ुशी
इरादा छोड़ दिया इंसानियत का क़तले आम होते देख
बड़ा शोक़ था मौत से गले मिलने का ‘कागा’
इरादा छोड़ दिया अपनों की बेरुख़ी नफ़रत करते देख
नज़र नज़रिया
पहाड़ पर जलती सब देखते पैरों तले कोई नहीं
उजाला करता दीपक घर आंगन नीचे अंधेरा कोई नहीं
ज़ोर ज़ुल्म सितम ज़बरदस्ती करते आये स़दियों से ज़ालिम
ख़ामोश ज़ुबान पर ताला फ़िक्र ज़िक्र करता कोई नहीं
दीन हीन पर दया नहीं कुचले जाते क़दमों तले
रींगने वाले रौंदे जाते उड़ती चील मारता कोई नहीं
शेर अकेला राजा जंगल का मार नोच लेता जानवर
बिना लश्कर सब कांपते हांफते शोर मचाता कोई नहीं
हाथी के दांत खाने देखने के अलग अल्ह़दा होते
कथनी करनी में बड़ा फर्क़ सच्चाई बोलता कोई नहीं
घरेलू हिंसा हर रोज़ करते रहते ढोंग पाखंड नौटंकी
ऊंच नीच छूआ छूत जाति प्रथा तोड़ता कोई नहीं
कबीर रविदास कह गये सच्चाई बुराई नेकी का भेद
जैसे चिकने घड़े पर बूंद पड़ी मानता कोई नहीं
नर बलि देव-दासी प्रथा जाति निर्माता बड़ा अपराधी
गर्दन बंधी हा़डी कमर में झाड़ू टटोलता कोई नहीं
संविधान में मिला बराबरी का ह़क़ आरक्षण एक आधार
अब कोटा में कोटा मचा बवाल तोलता कोई नहीं
फूट डाल राज करो धर्म राजनीति का रंग रूप
कूट नीति बनी कटार मुख बंद खोलता कोई नहीं
शोषित को हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई अपना नहीं मानते
दबंग करते दबंगाई ख़ून किसी का खोलता कोई नहीं
समुंदर मंथन से मिला था अनमोल चौदह रतन ‘कागा’
विष पिया नील कंठ कहलाये अमृत घोलता कोई नहीं
हिजड़ा
हिजड़ा होता ख़ुश पराया पुत्र पैदा होने पर
भंगड़ा होता ख़ुश पराया पुत्र पैदा होने पर
बांझ को होती ईर्ष्या प्रसव पीड़ा नहीं देखी
नीच होता नाराज़ पराय पुत्र पैदा होने पर
जलन होती बदचलन को किसी का पिया देख
बलन होती बहुत पराया पुत्र पैदा होने पर
सौतन मिट्टी की बुरी सौतेला सौतन से बुरा
ध्रुव गोद उठाया पराया पुत्र पैदा होने पर
विधवा देती बद-दुआ सुहागन सुंदर नारी को
श्रृंगार नहीं सुहाता पराया पुत्र पैदा होने पर
‘कागा’ किन्नर को कम मत जान बजाये ताली
दुआ दिल से पराया पुत्र पैदा होने पर
बाज़
कबूतर मंदिर के कल्श पर बेठ बाज़ नहीं बन सकता
कौवा गुरूद्वारा के गुबंद पर बेठ बाज़ नहीं बन सकता
चिड़िया बेठ जाये चर्च की चोटी पर चहल-पहल करती
क़द किरदार क़दावर काठी का मयार बाज़ नहीं बन सकता
मोर बेठ जाये मस्जिद की मीनार पर मोज मस्ती में
सुन्हरा रंग ह़ुसन आ आवाज़ शीरीं अंदाज़ बाज़ नहीं बन सकता
कोयल क़ोल दिल को छू लेता आशिक़ माशूक़ का राज़
बेठ जाये ऊंची बुलंदी पर ख़्याल बाज़ नहीं बन सकता
आसमान को चीर फाड़ देती बाज़ की पंखों की फड़फड़ाहट
गिद्ध का नाज़ नख़रा नज़र नज़रिया बाज़ नहीं हो सकता
‘कागा’ चला हंस की चाल मटक-मटक कर झट पट
चाहे कोई बन जाये हमराज़ शाह बाज़ नहीं हो सकता
मेरा घर सामान
वो कहते मेरा बंगला अंत भगवान के घर जाना है
मैं कहता भगवान का बंगला अंत अपने घर जाना हैं
तन मन चित्त चरित्र बुद्धि सांसें सब कुछ भगवान के
मैं खिलोना मात्र भगवान का अंत अपने घर जाना है
तिनका तिनका कंकर पत्थर ईंट गारा जोड़ बंगला बना सुंदर
दो दिनों का बसेरा मेरा अंत अपने घर जाना है
घोड़ा हाथी मोटर कार हवाई जहाज सब बेकार क्षण भंगुर
पराये कंधों पर होकर सवार अंत अपने घर जाना है
ज़मीन धन दोलत जागीर साथ लाये नहीं साथ लेकर जायेंगे
रिश्ता नाता सारे बंधन छोड़ अंत अपने घर जाना है
ह़स्ती मस्ती बस्ती रोब रुतब्बा शानो शोक्त शहोरत मुल्क मेरा
दर बदर पल भर में अंत अपने घर जाना हैं
हमारी बस्ती बर्बाद नहीं शादाब आबाद हैं सदा बहार ‘कागा’
कहते लोग क़बरस्तान शमशान आलीशान अंत अपने घर जाना हैं
करवा चौथ
सज धज कर सोलह श्रृंगार चांद दर्शन को तैयार
पग पायल बांध घुंघरू छम-छम नाचन को तैयार
पति व्रत नार करवा चौथ धारण बिना आहार निर्जल
लिये हाथ छलनी छत चढ़ चांद दर्शन को तैयार
छलनी में छेद बेशुमार छवि निरखे पति परमेश्वर की
बन चांदनी चांद की उतावली चांद दर्शन को तैयार
चांद बड़ा चंचल मन करता बादलों बीच आंख मिचोनी
लुका छुपी धका मुकी चंद्रमुखी चांद दर्शन को तैयार
चांद दिल दे चुका चांदनी को समर्पण भाव से
चाहे लग जाये ग्रहण चांदनी चांद दर्शन को तैयार
सुहागन सुंदर नार काजल आंखों में सिंदुर सजा मांग
ललाट पर लाल बिंदिया सजी चांद दर्शन को तैयार
पति का दर्शन पावन मन भावन पवित्र चित्त चरित्र
चमक दमक महक निर्मल निराली चांद दर्शन को तैयार
सहेलियां बुझाती पहेलियां गाती मिल-जुल संग मंगल गीत
बखान करती पिया का हरदम चांद दर्शन को तैयार
पति की लम्बी आयु की करती कामना भावना से
जीमण बिना पति नहीं करे चांद दर्शन को तैयार
भूखी प्यासी उदास मन मायूस चेहरे पर चमके ख़ुशी
चोखी प्रीत चकोर चांद नही़ माने चांद दर्शन को तैयार
पति परमेश्वर पत्नी का ध्यान रखें कष्ट में ‘कागा’
नारी जाये बलिहारी बारी-बारी चांद दर्शन को तैयार
मिट्टी से मोह
मेरा अपनी मिट्टी से मोह तन मन से
मेरा अपनी मिट्टी से प्रेम जीवन वचन से
मां की कोख से बाहर निकल रखा क़दम
तब से करता प्यार दुलार तन मन से
बच्चपन में घरोंदा बनाया करता भीगी धूल का
फिर बिगाड़ देता बेवक़ूफ़ बन तन मन से
यदा-क़दा मुठ्ठी भर गटक लेता मिट्टी को
सुगंध भरी सलोनी सौधा स्वाद तन मन से
लोट पोट कर चूम लेता घुटनों बल चल
चाट लेता रेत चुपके से तन मन से
मिट्टी से उपजा खाता अनाज फल मेवा साग
पीता पानी पाताल का प्यासा तन मन से
होती वर्षा बादल गरज बिजली चमकती चका चोंध
ताल तलाई पानी पालर पीता तन मन से
आंधियों में धूल उड़ कर पड़ती आंखों में
मसल देता मुड़ कर अपने तन मन से
झौंपड़ी में बूंदें बरसती धारो धार आर-पार
बेपरवाह बन टना टना रहता तन मन से
मालूम था मुझे मेरा अंतिम घर क़बर ‘कागा’
खोद गाड़ ऊपर डालेंगे मिट्टी तन मन से
गुनाह़गार
हां मैं गुनाह़-गार हूं अपने आपका
हां मैं त़लब-गार हूं अपने आपका
ज़रूरतमंदों पर तवज्जो थी एक सरसरी नज़र
हां मैं शुक्र-गुज़ार हूं अपने आपका
दावतें क़बूल नहीं की शराब कबाब की
हां मैं मदद-गार हूं अपने आपका
बेश-क़ीमती त़ोह़फ़े तसलीम नहीं किये कभी
हां मैं ख़िदमत-गार हूं अपने आपका
रिश्वत का रस्मो रिवाज रवायत का ख़त़्मा
हां मैं पनाह़-गार हूं अपने आपका
शोला नहीं शबनम बन ज़िंदगी बसर की
हां मै इबादत-गार हूं अपने आपका
हमदर्द बना बेदर्द सिर दर्द नहीं ‘कागा’
हां मैं आग अंगार हूं अपने आपका
ढाटी
असीं ढाटी ढाट रा ढाटी असांजी बोली
बंतळ करां आपस में ढाटी असांजी बोली
मन चित्त री बातां करां बेठ भेळा
कम करां घर आपरे मिळे जड बेळा
घर बीती करां बातड़ियां मिळ जुळ हेक
कारो कोचरो कोई नहीं नियत असांजी नेक
इकोतर में आया लडे घर आपरा छडे
तपड़ ताड़ी खेत खळा चोरा डोहला छडे
धोरा धरती हती पण नेपाळु हती घणी
बाजरी गवार मूंग कोरड़ होती घणा घणी
काळींग चिभड़ीं चिभड़िया तीडसियां रो पार कोनीं
होळी डीवाळी हेत सीं मनाता पार कोनी
घर ओटे मथे डिया बाळता मिट्टी रा
तेल वट कपास री डिया मिट्टी रा
बाजरी रे काने मथे कपड़ो बींट बाळता
फटाका फोड़ता बम जेहड़ा जोर तारा बाळता
बोलता डियो डिठो निंढ़ो वडो चिभड़ मिठो
नब्बा गभा पेहरता हिरख बाफतो खाता मिठो
घी गाईंयां रो घणी होतो मथे बरसाळो
ऊना ओढण बाहर निकाळ कहता आयो सियाळो
‘कागा’ खेतां खूंटता बाजरी बढता गवार मूंग
करता धान अछो पछे आठ महिणा ऊंघ
डा, भीमराव अम्बेडकर
भीमराव कोई देवता नहीं इंसान था
अम्बेडकर कोई अवतार नहीं इंसान था
उच्च वर्ण में अवतार उत्पति हुए महाबली
असुरों को मार गिराया मची खलबली
वेदों की रचना सिंधु तट पर
जीने की पद्धति सिंधु तट पर
आठ उपनिषद अठारह पुराण सनातन धर्मं
चार वर्ण में बांटा सनातन धर्मं
ब्रह्मण क्षत्री वैश्य उच्च शूदर नीच
हर पवित्र ग्रंथ मे शूदर नीच
महा-भारत गीता रामायण ने दुत्कारा
मनुस्मृति में कठोर नियम बना दुत्कारा
कोई देवदूत नहीं बन आया देवता
कोई अवतार नहीं आया आगे देवता
अम्बेडकर अकेला एक इंसान मसीह़ा बना
भारत का संविधान लिख मसीहा़ बना
संविधान में दिया बराबरी का ह़क़
जग ज़ाहिर खुलम खुला नहीं शक
‘कागा’ जय भीम का नारा बुलंद
शूदर का हुआ हिम्मत ह़ोस़ला बुलंद
डा, एपीजी अब्दुल कलाम
डा, एपीजी अब्दुल कलाम की जयंती पर शत शत नमन
मिसाईल मेन ने बनाया मुल्क को चमक दमक वाला चमन
एसा कोई आला नहीं ओर विशेष वैज्ञानिक बेदाग़ छवि वाला
पोखरण में किया परमाणु परीक्षण कर धमाका वाह-वाह वत़न
आदर्श वाक्या हर जवान के लिये प्रेणा का स्रोत स़ाबित
अपना सपना एसा देखो सोने नहीं दे करते रहो प्रयत्न
अटल बिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री ने खोज निकाला लाखों में
मात्र एक अनोखा आम जनता ने किया भरपूर सहयोग समर्थन
नई दिशा मिली देश को बदली दशा दुनिया में तस़वीर
दुश्मन देशों का हुआ सर्व नाश मिटी साख हुआ पतन
आओ मिल जुल कर मनायें जयंती धूम धाम से ‘कागा’
एसा नस़ीब हुआ इकलोता अन-मोल अजीबो ग़रीब भारत रत़्न
अपना कुछ नहीं
बंदा आया बंद मुठ्ठी अपना कुछ नहीं
बंदा चला खुले हाथ अपना कुछ नहीं
दुबला पतला कमज़ोर हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
जात पात धर्म मज़हब अपना कुछ नहीं
भूख प्यास निद्रा लगती रोने की किलकारी
नहाया धोया नहीं हाथों अपना कुछ नहीं
मां ने स्तन पान कराया प्यार से
अपने आप नहीं खाया अपना कुछ नहीं
बोल तोतले सिखाया गया स्वर शब्द सार
रिश्ता नाता प्रेम घ्रणा अपना कुछ नहीं
इंसान बन कर आया खिलोना बन गया
कठपुतली जेसे नाचने लगा अपना कुछ नहीं
खान पान आचार विचार संस्कार पाठ पढ़ाया
जिस सांचे में ढाला अपना कुछ नहीं
दो ग़ज़ ज़मीन कफ़न वास्ते धन कमाया
ख़ाली हाथ चला अकेले अपना कुछ नहीं
नहलाया ग़ैरों ने चढ कर पराये कंधों पर
जलाया दफ़नाया अपनों ने अपना कुछ नहीं
सारी शक्ति सांसों में काया माया सपना
परछाई ने साथ छोड़ा अपना कुछ नहीं
अपने बन गये बेगाने रोना बिलखना पाखंड
साथ निभाया शमशान तक अपना कुछ नहीं
ईर्ष्या अहंकार नहीं कर जीवन दो दिन
मौत जैसा मित्र कौन अपना कुछ नहीं
मानव बन मानवीय मूल्यों का कर विकास
यह तन किराये का अपना कुछ नहीं
नैतिक पतन नहीं हो कर जतन प्रयत्न
मर्यादा पर आंच नहीं अपना कुछ नहीं
मन बुद्धि चित्त चंचल चमक दमक ‘कागा’
क्षण भंगुर पल में अपना कुछ नहीं
वक़्त-बख़्त
वक़्त बदलते वक़्त नहीं लगता
बख़्त बदलते वक़्त नहीं लगता
अमीर ग़रीब हो गये बंदे
ग़रीब अमीर हो गये बंदे
वक़्त बादशाह को ग़ुलाम बनाये
बख़्त शहनशाह को उलाम बनाये
अभी अ़र्श पर उड़ जाये
अभी फ़र्श पर गिर जाये
वक़्त का नहीं कोई भरोसा
बख़्त का नहीं कोई भरोसा
‘कागा’ लिखा क़ैद क़िस्मत में
काटना पड़ेगा क़ेद क़िस्मत में
अंदाज़ा
अनकही अनचाही बातों का अंदाज़ा केसे लगायें
अनसुलझी उलझी गुत्थी का अंदाज़ा केसे लगायें
बड़ी उधेड़-बुन में उलझा उदास हूं
राज़ रमज़ रहस्य का अंदाज़ा केसे लगायें
आंखों के आंसू दिल दर्द बता देते
गिरे नहीं गालों पर अंदाज़ा केसे लगायें
चेहरा मुरझाया नज़रें झुकी होंठ सूख गये
ह़िजाब का जवाब नहीं अंदाज़ा केसे लगायें
दिल के फफोले फूट गये मवाद नहीं
स्वाद ज़ायक़ा याद नहीं अंदाज़ा केसे लगायें
आंखों को मालूम है पहेली का राज़
ज़ुबान में लफ़्ज़ नहीं अंदाज़ा केसे लगायें
दिल का दर्द दिल जाने ओर नहींं
वो दिल केसे मिले अंदाज़ा केसे लगायें
आह निकल पड़ती जब दिल तड़प जाता
प्यार का मर्ज़ मूज़ी अंदाज़ा केसे लगायें
एसा लगता इश्क़ हो गया माशूक़ से
आ़शिक़ दिल कौन है अंदाज़ा केसे लगायें
दिल दीवाना घुट घुट कर रोता रोज़
हम-रूह मिला नहीं अंदाज़ा केसे लगायें
प्यार आग का दरिया जल जाना ‘कागा’
मनस़ूबा होता नहीं मुकमल अंदाज़ा केसे लगायें
सामाजिक कुरितियां
आज कल समाज में कुरितियां बढ़ गई है
नया दौर नया माह़ोल भ्रांतियां बढ़ गई है
बाल विवाह दहेज प्रथा ओसर मोसर मृत्यू भोज
प्रयास जारी समाज में कुरितियां बढ़ गई है
बाल विवाह दहेज पर रिश्ते टूटते हर रोज़
लाइलाज रोग समाज में कुरितियां बढ़ गई है
अबोध बच्चों का होता विवाह मुकलावा बाद में
रस्मो रिवाज समाज में कुरितियां बढ़ गई है
दहेज से प्रहेज़ नहीं बनती कोढ़ में खाज
आधुनिक काल समाज में कुरितियां बढ़ गई है
अमीर ग़रीब की खाई बढ़ चौड़ी होती रहती
शिक्षा अशिक्षा समाज में कुरितियां बढ़ गई है
नई पीढ़ी का भविष्य अधर-झूल में धूमिल
परिवार पीड़ित समाज में कुरितियां बढ़ गई है
महिला मंगल गीत रीत लुप्त डीजे का ज़माना
फूहड़ नाच समाज में कुरितियां बढ़ गई है
रिश्ता नाता ग़ायब अनजान यार दोस्तों की टोली
शराब सेवन समाज में कुरितियां बढ़ गई है
ओसर मोसर मृत्यू भोज चर्म सीमा पर हावी
बड़ा बोझ समाज में कुरितियां बढ़ गई है
बुज़र्ग के मरने पर पंचों की पौ बारहा
बेकुंटी कांधीपा समाज में कुरितियां बढ़ गई हैं
शादी ग़मी में नशा-ख़ोरी अमल डोडा दारू
मदहोश बेहोश समाज में कुरितियां बढ़ गई है
अस़ल नस्ल ख़ानदान पीढ़ी ग्वाड़ी का ज्ञान नहीं
पैसा पहचान समाज में कुरितियां बढ़ गई है
अपणायत से दूरी ग़ैरों से सांठ-गांठ स्नेह
हाय हेलो समाज में कुरितियां बढ़ गई है
संस्कार सभ्यता संस्कृति गंगा युमना मेल मिलाप ‘कागा’
समाप्त ख़त्म समाज में कुरितियां बढ़ गई है
जातिवाद
हर धर्म में जाति का बोल बाला है
हर समाज में जाति का बोल बाला है
हर कोई व्यक्ति ख़ुद को ऊंच समझता हैं
हर वर्ण में जाति का बोल बाला है
ऊंचा जाने के लिये होती पायदान की ज़रूरत
हर पायदान में जाति का बोल बाला है
साधू संत महंत महात्मा पीर फ़क़ीर फक्कड़ क़लंदर
हर त़ब्क़े में जाति का बोल बाला है
जाति गौत्र खाप नस्ल ख़ानदान पीढ़ी दर पीढ़ी
हर नसल में जाति का बोल बाला है
ईश्वर ने कोई जाति नहीं बनाई इंसान निर्माता
हर वर्ग में जाति का बोल बाला है
जल थल वायु अग्न गगन की जाति नहीं
हर मानव में जाति का बोल बाला है
अन्य प्राणी में जाति बंधन नहींं कोई ‘कागा’
हर युग में जाति का बोल बाला है
घुम्मकड़
मैं घुम्मकड़ हूं मगर भुलकड़ नहीं
मैं घुम्मकड़ हूं मगर फक्कड़ नहीं
जन्म भूमि छोड़ दी पुश्तेनी पनाह
मैं घुम्मकड़ हूं मगर अकड़ नहीं
दर दर की ठोकरें खाई भटक
मैं घुम्मकड़ हूं मगर जकड़ नहीं
घाट घाट का पानी पिया घूम
मैं घुम्मकड़ हूं मगर पकड़ नहीं
जन्म भूमि ढाट कर्म भूमि मारवाड़
मैं घुम्मकड़ हूं मगर धाकड़ नहीं
लोट देखी जन्म भूमि छह बार
मैं घुम्मकड़ हूं मगर चक्कर नहीं
समाज के चरणों की धूल ‘कागा’
मैं घुम्मकड़ हूं मगर टक्कर नहीं
विजय दशमी
विजय-दशमी बुराई पर अच्छाई की जीत
घन-घोर अंधेरे पर उजाला की जीत
नव दुर्गा नवरात्रा स्थापना के अंतिम दिन
शक्ति स्वरूप देवी पूजन अर्चना की जीत
सत्ती सीता माता मुक्त हुई बंधन से
लंका का राजा विभीषण राम की जीत
दश शीष राजा रावण का अंत हुआ
जलाते मिल जुल कर लक्ष्मण की जीत
चौदह वर्ष का बनवास समाप्त राम का
सीता लक्ष्मण संग अयोध्या लोटने की जीत
शेष दिन बीस बिताये वन में ‘कागा’
दीपाली मनाई रोशनी कर सच्चाई की जीत
पवित्र बंधन
पति पत्नी का पवित्र बंथन अटूट विचित्र
एह़सास का रिश्ता नाता वंदन अटूट विचित्र
आसमान से उतर आती धरती पर जोड़ी
बनती अ़र्श में फलती फ़र्श पर जोड़ी
दो दिलों का मिलन होता प्रेम प्रवाह
संयुक्त समान चित्त चलन होता जब विवाह
गृहस्थ वैवाहिक जीवन के दोनों पहिये चलते
ऊबड़ खाबड़ डगर पर डगमग जगमग चलते
होती परस्पर भावानाओं की क़द्र इच्छा पूर्ति
दाम्पत्य जीवन सुख-मय मार्मिक मोहक मूर्ति
जीवन संग आजीवन बंधन अमर अजर अटूट
पति परमेश्वर धर्म-पत्नी की उपमा अटूट
अर्धांगिनी बिना नर जीवन आधा अधूरा अक्षम
पत्नी करती पूर्ण जीवन में सारगर्भित सक्षम
पति पत्नी का बंधन प्रकृति की देन
वचन निभाते मन से प्रकृति की देन
समस्त सम्बंध से एक अलग अनोखा रिश्ता
चोट लगी तन रोती आंख अनोखा रिश्ता
साया बन साथ रहते दोनों मिंयां बीवी
स्वर्ग नर्क मुठ्ठी में दोनों मिंयां बीवी
‘कागा’ कल्ह जिस घर में जीवन जंजाल
घृणा छोड़ो प्रेम जोड़ो वरना जीवन जंजाल
पुरुष प्रधान
पुरूष प्रधान देश नारी का होता अपमान
बिना महा पुरुष नारी का होता अपमान
बहिन बहू बेटी की अस्मत लूटी जाती
होता सरे-आम बलात्कार इज़्जत लूटी जाती
शक्ल सू़रत इंसान जेसी अंदर बेठा ह़ेवान
भूखे भेड़िये नोच लेते अंदर बेठा ह़ेवान
सुरक्षित नहीं आज कल अदब आबरू सम्मान
बुज़र्ग बुढ़े बेह़ाल निढ़ाल अदब आबरू सम्मान
जात पात का बोल बाला छूआ छूत
भेद भाव मिटा नहीं आकंठ दुखी अछूत
गाय माता गलियों में भटकती रहती लावारिस
धणी धोरी नहीं कोई लूली लंगड़ी लावारिस़
गौशाला का गोरख-धंधा सरकार देती अनुदान
बछड़े फिरते बदह़ाल नंदी शाला को अनुदान
मह़कमा माल मवेशी का चुस्त दुरस्त नहीं
क़ायदा क़ानून दिलो दिमाग़ चुस्त दुरस्त नहीं
गाय ग़रीब नारी किसान को रखो ख़ुशह़ाल
‘कागा’ भारत विश्व गुरु बनेगा देश ख़ुशह़ाल
मेरी प्यारी मां
मेरी प्यारी मां तेरी ठंडी प्यारी छांव
मेरी दुलारी मां तेरी ठंडी प्यारी छांव
तेरी गोद में पालन पोषण हुआ मेरा
तेरे आंचल में भरण पोषण हुआ मेरा
चिपक सीने से लपक गटगट पिया दूध
वादा लजाने नहीं दूंगा तेरा पिया दूध
मेरी क्या ख़त़ा ग़ल्त़ी छोड़ चली गई
सेवा नहीं कर पाया छोड़ चली गई
मुस़ीबत के पहाड़ मेरे सिर पर झेले
बहुत याद आती दुख दर्द ख़ूब झेले
पुकार देता तेरा नाम तब राहत मिलती
तेरा नाम त़ाक़त देता तब राहत मिलती
यदा-कदा गिर जाता किसी से टकराता
सुकून मिलता नाम लेता तेरा जब टकराता
‘कागा’ मेरे स्वपनों में सदेव सहायता करती
तेरी छवि मेरी आंखों में सहायता करती
मिटती जा रही सभ्यता
मिटती जा रही है प्राचीन सभ्यता संस्कृति हमारी
घटती जा रही है जान पहचान संस्कृति हमारी
माता पिता का चर्ण स्पर्श करना भूल गये
बड़े बुज़र्गों का मान सम्मान करना भूल गये
बहू करती तकरार सास से बात बात पर
बेइज़्ज़त करती बार बार हर बात बात पर
पुराने ज़माने में पैर दबाया करती सास का
आज कल गर्दन मरोड़ देती है सास का
बेटे बन गये जोरू के गु़लाम भीगी बिल्ली
घूंघट पर्दा गरिमा नहीं घर में मचती खलबली
साड़ी लहंगा चूनरी चलन बंद जीनस का ज़माना
अंगरखी पगरखी पहनते नहीं सूट बूट का ज़माना
पनघट पर पानी नहीं भरती पणिहारी रिवाज बदला
खान पान थाली कटोरी उठना बेठना मिज़ाज बदला
चूल्हा चौका नहीं होता झाड़ू पोचा घर स़फ़ाई
बाहर से आती काम वाली करती घर स़फ़ाई
संस्कार उच्च विचार सीख नस़ीह़त नहीं आदर सत्कार
मान सम्मान मर्यादा नहीं हेस़ियत नहीं आदर सत्कार
कोरी मटकी का ठंडा पानी पीना बंद किया
आना जाना मिलना जुलना अपनों से बंद किया
नंगा सिर अपशकुन मानते थे पुराने ज़माने में
आज कल फ़ेशन में शुमार नये ज़माने में
बाजरे का सोगरा रोटी गेहूं की नहींं खाते
चखते चाट मस़ाला होटलों में इडली डोसा खाते
रिशते नाते कच्चे बनाये पक्का मकान उम्दा आलीशान
‘कागा’ कोठरी कच्ची नहीं झुग्गी झौंपड़ी का निशान
संविधान निर्माता
संविधान निर्माता डा, भीमराव अम्बेडकर ज़िंदाबाद
नारी मुक्तिदाता डा, भीमराव अम्बेडकर ज़िंदाबाद
संविधान का निर्माण कर कलंक मिटाया
बराबरी का ह़क़ दिया कलंक मिटाया
ढोल शूदर नारी ताड़न के अधिकारी
मूल भूत सुविधाओं का बनाया अधिकारी
बराबरी का ह़क़ दिया ह़की़क़त ह़़क़दार
अस़ल आज़ादी का ह़ुकूमत में हक़दार
मत अधिकार से वंचित थे ग़रीब
लोक तंत्र में लाये सबके क़रीब
शिक्षा संगठन संघर्ष का मंत्र पढ़ाया
सोये समाज को गेहरी नींद जगाया
‘कागा’ काया कल्प कर दी कंचन
स़ूरत मूर्त बदली क़द काठी कंचन
स्वाभिमान
स्वाभिमान पर अभिमान मेरा डगमगाया नहीं अभी
स्वाभिमान पर गर्व मेरा गड़बड़ाया नहीं कभी
झुके बिके नहीं धन दोलत की लालच पर
रुके थके नहीं क़दम लड़खड़ाया नहीं कभी
राह पथरीली कंटीली रेतीली थी चलते रहे
छाले पड़े आंसू छलके बड़बड़ाया नहीं कभी
ख़ंदक खोद रखी थी दुश्मन ने गेहरी
छलांग मार लांघ दी हड़बड़ाया नहीं कभी
हिम्मत ह़ोस़ला बुलंद रखा जोश जल्वा जारी
निशाना था मंज़िल मेरी छटपटाया नहीं कभी
जान हथेली पर रख चलते रहे बेख़ोफ़
डराया धमकाया ख़ूब चेहरा लटकाया नहीं कभी
इरादा अटल रहा बदला नहीं अपना मिज़ाज
ख़िदमत कर ख़ल्क़ की शर्माया नहीं कभी
उपहास का जीवन गुज़ारा उपेक्षा सहन कर
अपमान का घूंट पिया गर्माया नहीं कभी
अपेक्षा का पात्र बना मेहनत का फल
दुम नहीं हिलाई अपनी गुर्राया नहीं कभी
तलवे चाटे नहीं चापलूस चाटुकार चुग़ल बन
नमक ह़राम बन बेशऊर गिड़गिड़ाया नहीं कभी
नक़ाब ओढ़ बेठे रहज़न रहबरी बन ‘कागा’
लापरवाह होते लूट लेते घबराया नहीं कभी
लहर ज़रूर आयेगी
खड़े है दरिया किनारे लहर ज़रूर आयेगी
आज नहीं तो कल लहर ज़रूर आयेगी
पराया सुख सहन नहीं होता ह़स़द होती
मोह़ताज की मदद नहीं लहर ज़रूर आयेगी
फंस गये बीच मंझधार दोनों किनारे दूर
रख ख़ुद पर भरोसा लहर ज़रूर आयेगी
सितारे गर्दिश में बुलंद होंगे देखना दोस्त
अच्छे दिनों का इंतज़ार लहर ज़रूर आयेगी
आज हा़शिये पर सुरख़ियों में होंगे ह़ाज़िर
ख़ज़ां होगी ख़त्म ख़ुदारा लहर ज़रूर आयेगी
सच्च का सूरज उगेगा मिटेगा रात अंधियारा
दिन का होगा उजाला लहर ज़रूर आयेगी
रुक मत जाना थक मत जाना मुसाफ़िर
मंज़िल मिलेगी सामने दोड़ लहर ज़रूर आयेगी
तकबर करने वाले कंध बल गिरेंगे ‘कागा’
बहार लोट आना मुमकिन लहर ज़रूर आयेगी
नर-नारी
दुनिया में दो चीज़ नर ओर नारी
दुनिया में दो अ़ज़ीज़ नर ओर नारी
नर नारी दोनों मिल करते नव निर्माण
नारी बिना नर अधूरा चारों वेद प्रमाण
नारी निर्माता दाता कुल कुटम्ब कुनबे की
नारी अमर बेले बढ़ती वंश कुनबे की
नारी नव दुर्गा नवरात्रा माता होती प्रक्ट
करता व्रत पूजा मन से होती प्रक्ट
असूरों को मारा मचाया जब आतंक उपद्रव
निजात मिली जग में मिटाया आतंक उपद्रव
नवरात्रा स्थापना वेला पर जगदाम्बा का स्मर्ण
‘कागा’ मिटे कष्ट कलेश करें जाप स्मर्ण
दस्तूर
दुनिया का दस्तूर आना ओर जाना
दुनिया में नहीं दायमी ठोर ठिकाना
आये अकेले जाना भी अकेला होगा
चंद दिनों का मेला आरज़ी आशियाना
तोल मोल मुख खोल मीठा बोल
नहीं चले साथ ढेला दोलत दाना
आज करना अभी कर कल नहीं
झूठ झांसा नहीं झमेला क्यों शर्माना
रिश्ते नाते सब मत़लब त़लब के
नहीं कोई गुरु चेला का ज़माना
छल कपट लोभ लालच से दूर
प्रेम प्रवाह का रेला नाता निभाना
नैतिक मूल्यों का पतन नहीं ‘कागा’
जतन करना प्रयत्न करना सत्य फ़रमाना
इंसानियत
तुम डाल डाल तो हम पात पात
तुम धर्म मज़हब तो हम जात पात
ईश्वर ने दो जाति बनाई नर मादा
इंसान ने अनंत जात जात में जात
पांच तत्व का पुतला बनाया भगवान ने
ईश्वर अंदर जेसे केला पात में पात
मानव ने मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे बनाये
इंसान को बिठाया अंदर करे पूजा पाठ
कोई अदा करता नमाज़ कोई आरतीअर्चना
कोई करे पठन गुरु ग्रंंथ दिन रात
नर मादा से पैदा होते इंसान इंसानियत
संस्कार सभ्यता संस्कृति चोली दामन का साथ
रक्त का रंग लाल हर प्राणी का
भेद भाव करे मानव हरदम विश्वास घात
ऊंच नीच छूआ छूत का भूत सवार
सिर चढ़ कर बोले आदमी पर आघात
कुत्ता बिल्ली किसी जानवर से नहीं नफरत
इंसान की इंसान से अ़दावत बग़ावत वारदात
भाई-चारा का ताना-बाना मज़बूत करें
गिला शिक्वा दूर करें दुरस्त चुस्त जमात
जाति का ज़हर उगलना छोड़ दो ‘कागा’
प्यार का नाता जोड़ रहो एक साथ
रिश्ते रिश्वत ख़ोर
आज कल रिश्ते हो गये रिश्वत ख़ोर
क़दम दर क़दम हो गये मुफ़्त ख़ोर
सगाई से शादी तक तोल मोल करते
लेन देन लूट हो गये रिश्वत ख़ोर
अस़ल नस्ल का अंदाज़ा नहीं दोलत चाहिये
सम्पति शानो शोक्त हो गये रिश्वत ख़ोर
करते थे कन्या दान बिना देख चेहरा
पान पंखुड़ी जान हो गये रिश्वत ख़ोर
राजा रचते स्वम्बर गले डाल वर माला
राज कुमार राज़ी हो गये रिश्वत ख़ोर
दरिंदे मांग रहे दहेज नहीं कोई परहेज़
मानव बना दानव हो गये रिश्वत ख़ोर
लाज मर्यादा गरिमा ग़ायब हुई खुला खेल
माता पिता मायूस हो गये रिश्वत ख़ोर
सगे सम्बंधी करते नीलाम बोली ओलाद की
ख़ानदानी का ख़ात़मा हो गये रिश्वत ख़ोर
बेनस्ल का बोल बाला करते मनमानी ‘कागा’
दिखावट का दौर हो गये रिश्वत ख़ोर
नारी का सम्मान
नारी का सम्मान संस्कृति सभ्यता की पेहचान
नारी का सम्मान इंसानियत इंसान की पेहचान
नारी नर की जननी संगनी ममता क्षमता
नर नारी की जोड़ी सभ्यता की पेहचान
प्रकृति पुरुष से हुई सृष्टि की रचना
नारी में नूरानी निराली सभ्यता की पेहचान
नारी से राम कृष्ण भरत की उत्पति
सीता सावित्री पार्वती लक्ष्मी सभ्यता की पेहचान
नारी नव दुर्गा नवरात्रा स्थापना पर नमन
उपासना आराधना आरती दर्शन सभ्यता की पेहचान
नारी का सम्मान करो अपमान नहीं ‘कागा’
नारी शांति सम्पति सहमति सभ्यता की पेहचान
प्यार बनाम पैसा
हम प्यार के भूखे हमें प्यार चाहिये
जो पैसों के भूखे उनको पैसे चाहिए
बिना प्यार इंसान बेकार बिना रस मेवा
प्यार में ख़ुशबू ख़ुशी हमें प्यार चाहिये
हम ग़रीब ज़रुर मगर प्यार के परवाने
सोते चैन की नींद हमें प्यार चाहिये
बिना प्यार जीना बेकार तड़पे तन मन
जैसे बिना जल मछली हमें प्यार चाहिये
बिना प्यार भोजन बेस्वाद लगता बेरस बेअसर
घास की रोटी जैसा हमें प्यार चाहिये
आज कल इंसान पैसे के पीछे पागल
अपनों से करता नफ़रत हमें प्यार चाहिये
प्यार से पैसों की तुलना करना बेमानी
प्यार का किरदार बड़ा हमें प्यार चाहिये
पैसे करते जीवन की हर ज़रूरत पूर्ण
पैसा कोई कम नहीं हमें प्यार चाहिये
जीवन में पैसे का महत्व महान दोस्तो
पैसा एसा वैसा नहीं हमें प्यार चाहिये
प्यार रुह़ जान दम सांसें शक्ति भक्ति
प्यार जल थल वायु हमें प्यार चाहिये
बिना प्यार इंसान सांप जैसा मारे डंक
ज़हर से भरी ज़ुबान हमें प्यार चाहिये
मानव का हर घर जन्म होता ‘कागा’
मानवता किसी एक घर हमें प्यार चाहिये
ज़िंदगी
ज़िंदगी रोज़ दो चार कुछ कर गुज़र
सांसें मिली मुफ़्त उधार कुछ कर गुज़र
मिला बदन मिट्टी का कोई भरोसा नहीं
मिले नहीं हाट बज़ार कुछ कर गुज़र
सूरज जेसा चमकना है अगर जलना पड़ेगा
भट्टी में जलता अंगार कुछ कर गुज़र
रात को रोशन कर दीपक बन कर
देख तेल की धार कुछ कर गुज़र
उठ जाग मुसाफ़िर चल मंज़िल की ओर
नहीं करना कभी तकरार कुछ कर गुज़र
चमन में चहक महक चिड़िया बुलबुल की
बन गुल गुलाब गुलज़ार कुछ कर गुज़र
समुंदर की गेहराई बन समेट हीरा मोती
नदियां दोड़ी आये हज़ार कुछ कर गुज़र
ख़त़रों से खेलना सीख खिलाड़ी बन ख़ुदारा
नहीं बनना कभी ग़द्दार कुछ कर गुज़र
मोह़ताज नहीं सरताज बन सिरमोर शूर वीर
भिखारी बनना बेह़द बेकार कुछ कर गुज़र
सियासत शत़रंज का खेल गुली डंडा नहीं
बिठा अपने मोहरे विचार कुछ कर गुज़र
दुनिया मत़लब की अपनी मर्ज़ी मुत़ाबिक़ चलती
जलती देख तेज़ तर्रार कुछ कर गुज़र
बांध सिर कफ़न अपने सफ़ेद कपड़ा ‘कागा’
काम्याबी कर रही इंतजार कुछ कर गुज़र
सीख
इंसान ने सलीक़ा सीखा ओरों से
इंसान ने त़रीक़ा सीखा ओरों से
जन्म से नहीं होता कोई प्रवीण
इंसान ने बोलना सीखा ओरों से
मां ने दूध पिलाया सीने लगाया
इंसान ने खाना सीखा ओरों से
कांटों के साथ गुलाब महक खिलता
इंसान ने रहना सीखा ओरों से
घुटनों बल चलते रेंगते बच्चे बेबस
इंसान ने चलना सीखा ओरों से
नींद भूख प्यास प्रकृति की देन
इंसान ने व्यवहार सीखा ओरों से
अकेला आया अकेला जाना वापिस ‘कागा’
इंसान ने जीना सीखा ओरों से
गांधी जयंती पर विशेष
गांधी की आंधी ने ख़ात्मा कर दिया अंग्रेज़ों का
बांध बिस्तर बोरिया भाग खड़े होश उड़ाया अंग्रेज़ों का
अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा हुआ बुलंद जनता में
ग़ुलामी की ज़ंजीरों में जकड़े आक्रोश उत्पन्न जनता में
साबरमती का संत बड़ा महान जगाया आम जन को
सोया पड़ा था गहरी नींद जगाया आम जन को
नमक आंदोलन चलाया बच्चा बुढ़ा जाग उठा चपे चपे
महात्मा मोहन दास कर्मचंद का गूंजा नाम चपे चपे
आंखों का कांटा बना कर दिया नाक में दम
दम घुटने लगा सांसे फूलने लगी नाक में दम
‘कागा’ आज़ादी का सहरा सिंर बंधा सपने किये साकार
जय हिंद का नारा गूंजा गगन सपने किये साकार
श्राद्ध
श्रद्धा नहीं माता पिता में करते श्राद्ध
आस्था नहीं मां बाप में करते श्राद्ध
जीवित का जीया जलाया कर बेइज़्ज़त बेआबरू
छोड़ आये वृद्धाश्रम में लावारिस करते श्राद्ध
छोटी सी बात पर करते रहते ज़लील
मूर्ख की देते थे पदवी करते श्राद्ध
सेवा चाकरी का नामो निशान नहीं कभी
मरने बाद मृत्यू भोज अब करते श्राद्ध
लोक लाज बेशर्मी की भी ह़द होती
करते लूट खसोट चोरी तस्करी करते श्राद्ध
नाम बदनाम परिजन का करते धड़ले से
मनह़ूस लेते घूस घनेरी डकार करते श्राद्ध
ज़िंदा मां बाप को सताया तड़पाया ख़ूब
खाना पीना दवा दारू नहीं करते श्राद्ध
जोरू के ग़ुलाम बन किया ज़ुल्म सितम
किया घर सम्पति से बेदख़ल करते श्राद्ध
भूख प्यास से बिलखते रहे बेसहारा बन
पूछा नहींं कभी ह़ाल चाल करते श्राद्ध
मन तन कर अर्पण तर्पण जीवित जी
कर जीवन समर्पण अपना फिर करते श्राद्ध
‘कागा’ को कागोल चखाने का छोड़ो ढोंग
बुराईयों का कर त्याग फिर करते श्राद्ध
शहीद ए आज़म भगत सिंह
लोहे के चने चबाने वाला भगत सिंह
अंग्रेजों की आंखों का तिनका बना तीखा
सरे आम धूल झौंकने वाला भगत सिंह
सुखदेव राजगुरु की जुगल जोड़ी बनी मज़बूत
फांसी का फंदा चूमने वाला भगत सिंह
चापलूस चुग़ल चाटूकार वत़न के बडे़ ग़द्दार
बेबाक बोलने वाला बावफ़ा शहीद भगत सिंह
आओ याद करें शूर वीरों को ‘कागा
मुल्क का नाज़ो फ़ख़र रहबर भगत सिंह
मेहमान
अब हम चंद दिनों के मेहमान
अब तुम चंद दिनों के मेज़बान
जहां से आये वहां जाना हमें
भटक अटक गये थे जाना हमें
आपके घर में गुज़ारे कुछ रोज़
दुलार मिला दमदार मुझे कुछ रोज़
फंस गया तेरे प्यार में पागल
आपकी मेहमान नवाज़ी ने किया पागल
बेझिझक बेगार करते रहे पेट वास्ते
चारों मौसम चलते रहे पेट वास्ते
जवानी बीत गई बर्बाद बेकार में
बुढापा बाक़ी चला जायेगा बेकार में
ऊंधे मुंह लटक भूल गये वचन
याद आये अचानक दिये गये वचन
मिला जीवन अनमोल खोया गोफन में
हीरा मोती लाल बहाया गोफन में
उतर गया नशा चढ़ा था सिर
अब खड़ी मोत आकर देख सिर
क़दम डगमगा रहे लड़खड़ा रहा तन
नैनों में नहीं नूरानी बेबस बदन
चेहरे पर झुर्रियां हाथ कांप रहे
चुभ रही छुरियां होंठ कांप रहे
माना जिसको अपना देते मुख अग्नि
चित्ता पर चढ़ाते जहां भभकती अग्नि
‘कागा’ क़बर चित्ता का कर चैन
जहां मिले अंत तक अमन चैन
ताल-मेल
ताल मेल बनाये रखो आपस में
मेल मिलाप बनाये रखो आपस में
ऊंच नीच भेद भाव छूआ छूत
छोड़ जोड़ नाता रिश्ता आपस में
एक हाथ से ताली नहीं बजती
दोनों हाथों का गठजोड़ आपस में
एक हाथ से भोजन करते भरपूर
धोते दोनों साथ साथ आपस में
दूसरे हाथ से करते मल स़ाफ़
ललित पलित नफ़रत नहीं आपस में
एक को चोट लगती दूसरा सहलाता
दोनों दर्द बांट लेते आपस में
खाना बनाते दोनों हाथ मिल जुल
दायां बायां ईर्ष्या नहीं आपस में
क़दम दर क़दम दोनो चलते पांव
आगे पीछे अ़दावत नहीं आपस में
मिलती मंज़िल गिला शिक्वा नहीं कोई
आकार होता अलग प्रेम आपस में
आंखों ने नहीं देखा ख़ुद को
तन देखती मिल समान आपस में
इंसान करता आपस में दोगलापन ‘कागा’
कलह कलेश करता रहता आपस में
जेसी करनी वेसी भरनी
जेसी करनी वेसी भरनी विधि का विधान
जेसी शक्ति वेसी भक्ति विधि का विधान
मन बुद्धि चित्त शुद्धि चंचल सरल संस्कार
जेसा अन्न वेसा मन विद्धि का विधान
जल निर्मल तन कोमल मल मल नहाना
धोना वस्त्र रखना पवित्र विधि का विधान
काम वासना क्रोद्ध भावना मानव के शत्रु
भूख प्यास निद्रा निंदा विधि का विधान
लोभ लालच मोह माया मद छोड़ बंदा
प्रार्थना आस्था आराधना आरती विधि का विधान
जीवन अनमोल में ज़हर नहीं घोल ‘कागा’
तोल बोल मुख खोल विधि का विधान
सबका मालिक एक
सबकी मंज़िल एक मगर रास्ते अनेक
सबका मालिक एक मगर वास्ते अनेक
भगवान बड़ा इंसान ऊंचा कोई बताये
सबका इरादा एक मगर मज़हब अनेक
कोई बनाये मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे
सबका ख़ून एक मगर चेहरे अनेक
एक मिट्टे के मजस्मे सारे इंसान
राम रह़ीम एक मगर जाति अनेक
कोई रहता ख़ामोश कोई बुलंद आवाज़
सबका मक़स़द एक मगर त़रीक़ा अनेक
इंसान बना बेरी इंसान का ‘कागा’
सबकी नज़र एक मगर नज़रिया अनेक
ह़िजरत
ह़िजरत करना कोई आसान काम नहीं
वत़न छोड़ना कोई आसान काम नहीं
वजह रही होगी जानना बहुत ज़रूरी
घर छोड़ना कोई आसान काम नहीं
सबब जान क्या करोगे हम दर्द
परिवार छोड़ना कोई आसान काम नहीं
आबाद झौपड़े खेत खलियान गांव था
पड़ोस छोड़ना कोई आसान काम नहीं
बच्चपन से साथ खेले लिखे पढ़े
यार छोड़ना कोई आसान काम नहीं
जन्म भूमि ननिहाल रिश्ते नाते वास्ते
रास्ते छोड़ना कोई आसान काम नहीं
पलायन कर बेघर आसमान के नीचे
विश्राम छोड़ना कोई आसान काम नहीं
दर दर की ठोकरें खाई भटक
अपने छोड़ना कोई आसान काम नहीं
घाट घाट का पानी पिया घूम
मुल्क छोड़ना कोई आसान काम नहीं
हाथ फेलाया नहीं किसी के सामने
ज़मीन छोड़ना कोई आसान काम नही
जंग जारी रखी मसायल से लड़ना
अरमान छोडना कोई आसान काम नहीं
ह़ोस़ला बुलंद रखा हर क़दम ‘कागा’
जायदाद छोड़ना कोई आसमान काम नहीं
ख़त़रा
अब ख़त़रा अपनों से ग़ैरों से नहीं
अब ख़ोफ़ गीदड़ों से शेरों से नहीं
पालतू तीतर बन बोलते बिकाऊ बोल
जाल में डाल फंसने पर उड़ाते मख़ोल
खाते खुरचन जूठन सूखी बासी चपाती भात
खाते पुलाव बिरियानी पीते पव्वा दिन रात
बोलते बोल रटाया गया बेज़मीर बन कर
गुर्राते बेग़ैरत उतरन पहन अमीर बन कर
गले में गमछा गु़लामी का बड़े बेशऊर
बाशऊर बाअदब की करते बेइज़्ज़ती बड़े बेशऊर
‘कागा’ कठपुतली बन नाचते पराये इशारों पर
बेशर्म बदतमीज़ बन बोलते पराये इशारों पर
इंसान ज़मीर
जमीर मर चुका इंसान ज़िंदा है
इंसान मर चुका जाति ज़िंदा है
बेचा ज़मीर चांदी के टुकड़ों पर
ईमान मर चुका इंसान ज़िंदा है
बेचा ईमान रोटी के टुकड़ों पर
पानी मर चुका इंसान ज़िंदा है
आंखों का बहता दरिया सूख गया
बेज़मीर मर चुका बाजमीर ज़िंदा है
ठोकर मारी ठाठ बाट को ठहर
रस्सी जल चुकी ऐंठन ज़िंदा है
इंसान दुनिया में अलग रंग रूप
स़ूरत मर चुकी सीरत ज़िंदा है
इंसानियत सिसक रही अंतिम सांसें बाक़ी
इंसान मर चुका इंसानियत ज़िंदा है
दस्तूर नहीं बदला दुनिया का ‘कागा’
माह़ोल मर चुका रिवाज ज़िंदा हैं
छू लूं मैं आसमान
जुनून कहता मेरा छू लूं मैं आसमान
ख़ून उबलता मेरा छू लूं मैं आसमान
बंद कली हूं फूल बनने दो मुझे
इरादा कहता मेरा छू लूं मैं आसमान
अबला नहीं सबला हूं कल्पना चावला जेसी
ह़ोस़ला रहता मेरा छू लूं मैं आसमान
तितली मत समझो मैं चील जेसी चुस्त
जोश कहता मेरा छू लूं मैं आसमान
असूरों को पछाड़ा देवियों ने इतिहास साक्षी
रूह़ उक़ाबी मेरा छू लूं मैं आसमान
नदी हूं कल कल कर चलती मतवाली
समुंदर मक़स़द मेरा छू लूं मैं आसमान
कायर नहीं पहाड़ पिघल जाते मेरे सामने
बर्फ़ीला चेहरा मेरा छू लूं मैं आसमान
आंधी तूफान सुनामी बन जाती यदा-कदा
कोमल दिल मेरा छू लूं मैं आसमान
सीप हूं सागर की कोख में मोती
सीना चौड़ा मेरा छू लूं मैं आसमान
ममता की मूर्त हूं क्षमता में मर्दानी
चमकीला रूप मेरा छू लूं मैं आसमान
बिजली बन कड़क जाती बादलों के बीच
बारिश रंग मेरा छू लूं मैं आसमान
मैं आत्मा बन बदन में रहती ‘कागा’
निराला संग मेरा छू लूं मैं आसमान
अकेला
अकेला आया जहान में अकेला लोट जाना
किराये दार बन कर अकेला लोट जाना
मेरा तेरा कुछ नहीं बाक़ी सब बकवास
अपनों से फ़र्ज़ निभाना अकेला लोट जाना
दुनिया का दस्तूर चंद दिनों का मेहमान
अपनों का क़र्ज़ चुकाना अकेला लोट जाना
भारी भीड़ में नज़र आता अजनबी अकेला
ख़ामोश ख़ुद ग़र्ज़ होना अकेला लोट जाना
नाते रिश्ते हम राही सफ़र के साथी
अदब से अर्ज़ हमारा अकेला लोट जाना
मोह़ब्बत नफ़रत दोनों बंद मुठ्ठी में लाये
अपना नाम दर्ज कराना अकेला लोट जाना
मां बाप बेटा जन्म के बंधन पुराने
त़ौर त़रीक़ा तर्ज़ बनाना अकेला लोट जाना
खुला हाथ जाना छोड़ बदबू ख़ुशबू ‘कागा’
बहाने बना मर्ज़ मरना अकेला लोट जाना
मरना बेहतर
घुट घुट कर जीने से मरना बेहतर
बंदी बन कर जीने से मरना बेहतर
शाहीन उड़ता ऊंचा आसमान को छू कर
पिंजरे में क़ैद पंछी से मरना बेहतर
ग़ुलामी का दाना पानी ज़हर से बदतर
उड़ान में आये कमी से मरना बेहतर
सांसें अटक जाती ह़लक़ में मरोड़ते गर्दन
आंखें फूट आती बाहर से मरना बेहतर
क़लमकार पढ़ते कशीदे किसी की शान में
चापलूसी की चाहत रखने से मरना बेहतर
क़लम कटार की धार तेज़ तर्रार रख
चाटुकारी के चार अल्फ़ाज़ से मरना बेहतर
आज़ादी की जद्दो-जहद में शायर शामिल
ज़िंदा लाश बन जीने से मरना बेहतर
बेबाक बिना रोक टोक बड़ा मुश्किल मुह़ाल
हक़ीक़त नहीं बयान करने से मरना बेहतर
सच्च बोलते नहीं लेते झूठ का सहारा
ग़ल्त़ी ग़फ़लत़ गुनाह करने से मरना बेहतर
नया रूह़ जान फूंकी कवियों ने ‘कागा’
ग़ुलामी की ज़िंदगी सफ़र से मरना बेहतर
झूठ झांसा
झूठ का बज़ार गर्मा गर्म सावधान
झांसा का माह़ोल गर्मा गर्म सावधान
नया त़ौर त़रीक़ा नया नारा इरादा
नफ़रत की आग सुलग रही सावधान
इंसान आपस में उलझ रहे फ़ालतू
धर्म के नाम धोखा धमकी सावधान
जाति भेद भाव छूआ छूत वर्गीकरण
आरक्षण से छेड़-छाड़ जारी सावधान
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई हम भाई
का नारा हो गया ख़त्म सावधान
बर्तन चमकाने के बहाने होती ठगी
लुटेरों के हो़स़ले बड़े बुलंद सावधान
बहिन बेटियां सुरक्षित नहीं दरिंदों से
होती हत्याऐं बलात्कार लगातार लानत सावधान
बेरोज़गारी का बोल बाला युवा परेशान
खाते दर दर की ठोकरें सावधान
नशे के आदी हो चुके मवाली
करते चोरी तस्करी गु़डा गर्दी सावधान
प्रकृति से करते छेड़ ख़ानी ‘कागा’
पर्यावरण प्रदुषण फेला संरक्षण नहीं सावधान
बदलाव
इंसान बदल गया हवा के साथ
चेहरा बदल गया उम्र के साथ
इंसान मत़लब का यार बड़ा ज़ालिम
विचार बदल देता ज़रूरत के साथ
हवा का रुख़ भांप चलता हरदम
संग बदल देता हुड़दंग के साथ
अपना कोई वजूद नहीं पराया भरोसा
ज़ायक़ा बदल देता ख़ोराक के साथ
पानी पर बुलबुला पल भर होता
मोती मान लेता स्वभाव के साथ
ओस की बूंदें दग़ा दे जाती
गुमराह हो जाता चमक के साथ
चढ़ जाता नशा जोश जवानी का
होश खो देता ह़वस के साथ
चमक दमक चका चौंध में ‘कागा’
जल जाते परवाने ज्वाला के साथ
बहु बेटी समान
बहु बेटी समान घर की आन बान शान
बहु बेटी समान घर की जान ईमान अरमान
बहु घर का पर्दा आंगन की रंगीन रंगोली
बहु में बेटी की छवि मुख की ज़ुबान
चाल चेहरा चरित्र चित्त चित्र पवित्र पावन भावन
ग्रहस्थ जीवन में ग्रहणी आनंद बरसाये वर्षा आलीशान
जन्म पर घर हुआ छोड़ आई माता पिता
पति संग जीवन समर्पण माना पति परमेश्वर समान
सास ससुर को मां बाप समझ करे सेवा
आंच नहीं आने दे परिवार की शान परवान
ननंद देवर को माने बहिन भाई सगा अपना
परम शांति प्रिय जीवन बीते भरा भंडार सामान
धन दोलत की कोई कमी नहीं ग्रह लक्ष्मी
कलह कलेश उठा पटक का नहींं नामो निशान
संस्कार सभ्यता संस्कृति गंगा जमुनी की धारा बहती
कल कल कर कहती घर स्वर्ग के सामान
बहु बेटी करती दो कुलों का नाम रोशन
मायका ससुराल के परिजन प्रसन्न पूर्ण देख अरमान
बहु घर की रानी बड़ी स्यानी कामनी ‘कागा’
घर में चार चांद लगाये चमके रोशन दान
सेवा मेवा
मात पिता की कर सेवा बंदा
जिसने दिया जीवन कर सेवा बंदा
प्रात: उठ कर चर्ण स्पर्श नमन
ह़ाल चाल पूछ कर सेवा बंदा
जीवन दिया जन्म दिया जग में
दिव्य कराया दर्शन कर सेवा बंदा
कर सेवा मिले फ़ल मेवा मीठा
दुआ आशीष मिले कर सेवा बंदा
मरने बाद करता ओसर मोसर दिखावा
मृत्यू भोज पकवान कर सेवा बंदा
जीवित की सेवा कर हर रोज़
आत्मा संतुष्ट रख कर सेवा बंदा
पितर पक्ष में करता अर्पण तर्पण
जीवित में समर्पण कर सेवा बंदा
मां बाप का क़र्ज़ चुकाना मुश्किल
फ़र्ज़ अदा ज़रूरी कर सेवा बंदा
स्वर्ग नर्क संसार में सुख दुख
मन चित्त प्रसन्न कर सेवा बंदा
वृद्ध आश्रम के ह़वाले नहीं करना
घर में रखना कर सेवा बंदा
पाल पोष बड़ा किया लायक़ बनाया
नालायक़ नहीं बन कर सेवा बंदा
मात तात जेसी सेवा नहीं ‘कागा’
छोड़ फंदा धंधा कर सेवा बंदा
जीवन के रंग
जीवन के रंग अनेक
कुछ बद कुछ नेक
कोई काला कोई गोरा
कोई लाल कोई कोरा
रंग बरंगी फूल खिले
चमन में पीले नीले
तिलली चहके बड़ी मस्त
कली खिली मद मस्त
बुलबुल बहक महक उठी
चिड़िया चुलबुली चहक उठी
त़ोत़ा मीना की कहानी
लेलां मजनू की ज़ुबगनी
राधा कृष्ण का प्रेम
मीरा कृष्ण का प्रेम
प्रेम भाव पावन पवित्र
शुद्ध मन भावन चरित्र
पुरूष प्रकृति का मेल
रज वीर्य का खेल
जेसी दृष्टि वेसी सृष्टि
जेसा बीज वेसी सृष्टि
कागा कोयल रंग एक
भिन्न भाषा अलग विवेक
इंसाफ़
आज कल इंसाफ़ धर्म के नाम होने लगा
आज कल न्याय जाति के नाम होने लगा
सच्च झूठ की परख नहीं फ़र्क़ नहीं फेर
आज कल रिश्ता राजनीति के नाम होने लगा
परिवार की पूछ ताछ नहीं मोबाईल सब कुछ
आज कल याराना दोलत के नाम होने लगा
फ़ेसबुक इंस्टाग्राम पर सगाई होती रंग रूप देख
आज कल ब्याह चैट के नाम होने लगा
दुल्हन दोड़ आती जाती सीमा पार सज धज
आज कल परिवार इंटरनेट के नाम होने लगा
धर्म मज़हब जाति बंधन नहीं भेद भाव ‘कागा’
आज कल समाज बराबरी के नाम होने लगा
इस्तेमाल
आपका इस्तेमाल हो रहा है सियास्त में
आपका उपयोग हो रहा है हिरास्त में
जाहल पागल हो तुम एकदम अनाड़ी अबोझ
आपका दुर्पयोग हो रहा है विरासत में
हाथ जोड़ दोनों मांगते बन भिखारी वोट
आपका उभोग हो रहा है शराफ़त में
पांच साल तक पेहचान नहीं रहते गुमनाम
आपका वियोग हो रहा है अदालत में
काम काज होता नहीं रोज़ मरह का
आपका प्रयोग हो रहा है शरारत में
तारा तोड़ लाने का करते वादा ‘कागा’
आपका उधोग हो रहा है इमारत में
नारी का सम्मान
कर नारी का सम्मान नारी नर की खान
कभी नहीं करना अपमान नारी नर की खान
मां की कोख से उत्पन्न हुआ होगा तुम
मां बेटे की जान नारी नर की खान
बहिन होगी चुलबुली चिड़िया गुड़िया प्यारी दुलारी लाडली
पराई का करते अपमान नारी नर की खान
बेटी कलेजे का टुकड़ा धड़कन दिल की धारा
बुरी नज़र नहीं जान नारी नर की खान
करते छेड़ ख़ानी गली कोचे चोराहे पर जबरन
करता बलात्कार लानत इंसान नारी नर की खान
दहेज वास्ते करता दमन दरिंदा बन हत्या ‘कागा’
सबको अपनी बहिन मान नारी नर की खान
देश भाग्य विधाता
हम दास देश के देश भाग्य विधाता
हम भक्त देश के देश हमारा दाता
बोलो वंदे मातरम चाहे ख़ुशी चाहे ग़म
देश दिल की धड़कन देश हमारी दम
जब तक जान जिस्म में ज़िंदा दिल
देश भाग्य विधाता दाता हम ज़िंदा दिल
आन बान शान जान क़ुर्बान मुल्क पर
ईमान अरमान बलिदान कर देंगे मुल्क पर
आंच नहीं आने पाये वत़न पर कोई
बुरी नज़र लगे नहीं दुश्मन की कोई
इज़्जत आबरू सांसों से प्यारा हमारा वत़न
ह़िफ़ाज़त करेंगे हर लिह़ाज़ से मुकमल जतन
धन दोलत शान शोक्त शहोरत मुल्क हमारा
वत़न हमारी आत्मा देश प्राण से प्यारा
तिरंगा आज़ादी का ऊंचा लेहराये छूकर आकाश
गायें गीत गुनगुना गूंजे नील गगन आकाश
‘कागा’ पंद्रह अगस्त को करें याद शहीद
ग़ुलामी से आजादी दिलाई करें याद शहीद
बेटी बोझ नहीं
बेटी बोझ नहीं बेटी सिर का ताज
बेटी मां बाप के सिर का ताज
बेटी तितली कली फूल की कोमल सुंदर
बेटी चेहकती चिड़िया गुड़िया सू़रत मूर्त सुंदर
बेटी अनमोल मोती मोर मुक्ट जेसी मोहक
बेटी को बोझ मत मानो मन मोहक
बेटी का वासा उस घर में लक्ष्मी
पूजन करो प्रेम से भंडार भरे लक्ष्मी
बेटी दो कुल का कल्याण करे भरपूर
मायके ससुराल का चिंतन करे भाग्य भरपूर
बेटी मां बहिन बहु का नाता निभाये
बेटी बूआ सास का रिश्ता नाता निभाये
बेटी घर आंगन की रंगोली भोली भाली
बेटी पूजा अर्चना आराधना आरती की थाली
‘कागा’ बेटी कलेजे की कूंपल पंखुड़ी प्यारी
बेटी का बखान कितना करूं महिमा न्यारी
राष्ट्र भक्ति
हम राष्ट्र भक्त हम अंध भक्त नहीं
हम वत़न प्रस्त हम अंध भक्त नहीं
हम उपेक्षा के शिकार बने बार-बार
भेद भाव छूआ छूत में तार-तार
धर्म देश ईमान नहीं छोड़ा हम बुलंद
लालच में अरमान नहीं तोड़ा हम बुलंद
ज़मीर अपना बेचा नहीं सहा ज़ुल्म सितम
बेघर बन रहना क़बूल सहा ज़ुल्म सितम
बहिन बेटियां ब्याही नहीं किसी ग़ैर को
अस्मत क़ायम रखी सौंपी नहीं ग़ैर को
रूखी सूखी बासी जूठन खाई भीख मांग
कभी सिर झुकाया नहीं अपनी सीमा लांघ
इंसान की गरिमा बनाये रखी मर्यादा में
मुख़बर ग़द्दार नही बने रहे मर्यादा में
वफ़ादार ईमानदार मुल्क के पीढ़ी दर पीढ़ी
ग़रीबी में जीवन गुज़ारा पीढ़ी दर पीढ़ी
कलंक का काला दाग़ नही लगने दिया
भूख प्यास मरना मंज़ूर नहींं लगने दिया
शिक्षा दीक्षा से दूर रखा परवाह नहीं
मंदिर पूजा पाठ से परहेज़ परवाह नहीं
‘कागा’ मुल्क पर आंच आने नहीं देंगे
जान की बाज़ी लगा आने नहीं देंगे
जाग राही
जाग राह के राही चल मंज़िल की ओर
जाग क़ौम के सिपाही चल मंज़िल की ओर
हर बंदा बेदार है मंज़िल ह़ास़िल करने को
ढूंढ रहा हम राही चल मंज़िल की और
दुश्मन खड़ा दरवाज़े पर राह की रुकावट रहज़न
तुला है करने तबाही चल मंज़िल की ओर
कौन अपना कौन पराया जान पेहचान कर प्यारे
बिना स़बूत देगा गवाही चल मंज़िल की कर
करवट बदल दल दल छल कपट झूठ झांसा
उठ लेकर अब अंगड़ाई चल मंज़िल की ओर
कारवां चला गया लशकर लड़ाई करने वाले लोग
अब रह गयी तन्हाई चल मंज़िल की ओर
रास्ता बड़ा मुश्किल है ऊबड़ खाबड़ डगर मगर
साथ रखना अपनी सुराही चल मंज़िल की ओर
चाक चौबंद होकर चलना खेल नहीं आसान यार
नहीं चलेगी ज़रा लापरवाही चल मंज़िल की ओर
ह़िस़ाब किताब लेखा जोखा सही सलामत रखना ‘कागा’
संग कापी क़लम स्याही चल मंज़िल की ओर
सच्चाई
सच्चाई सुनने को तैयार नहीं लोग
झूठ पसंद करते तैयार नही लोग
झूठ हज़म हो जाता जल्द मगर
सच्च से प्यार नहीं करते लोग
सच्च से प्यार नहींं आज कल
झूठ को पसंद करते गुमराह लोग
झूठ ज़िंदगी का ह़िस्स़ा हो गया
हर बात में बोलते झूठ लोग
डांट फटकार की परवाह नहीं ज़रा
कूंए में पड़ी भांग पीते लोग
ज़मीर औंघ गया सांप सौंघ गया
सच्च सुनते नहीं झूठ बोलते लोग
केसा दौर केसा ज़माना आया ‘कागा’
क़दम दर क़दम फरेब करते लोग
चले जाना
रोते आये जहान में रोते छोड़ चले जायेंगे
सोते आये संसार में सोते छोड़ चले जायेंगे
दुनिया में जीना दो दिन का आख़र जाना
बंद मुठ्ठी आये हम ख़ाली हाथ चले जायेंगे
दुनिया बड़ी दीवानी मस्तानी अजब ग़ज़ब खेल तमाशा
नंगा बदन आये हम नंगा तन चले जायेंगे
जन्म पर नहा नही सके मरने पर माज़ूर
उधार सांसे लाये हम सांसें छोड़ चले जायेंगे
हम रोये अपने हंसे बांटा गुड़ बजाई थाली
पैदल आये पराये कंधों सवार होकर चले जायेंगे
ख़ुशी ग़म का लुत़्फ़ लिया जग में जमकर
एक झौंके में उड़ते छू मंत्र हो जायेंगे
नहीं कोई ठोर ठिकाना नहीं मंज़िल का पता
अकेले आये हम अकेले जहान छोड़ चले जायेंगे
दो गज़ ज़मीन कफ़न कपड़े वास्ते कमाया धन
मेरा तेरा मत कर बंदा सब छोड़ जायेंगे
बिना पंख पंखेरू हर किसी के जिस्म में
पंख फड़फड़ा कर फुर्र होकर उड़ चले जायेंगे
मुखाग्नि देंगे अपने ज़रा भी तरस नहीं ‘कागा’
दफ़न करना जलाना करेंगे अपने हम चले जायेंगे
दीमक
दीमक लग चुकी धूल हटाओ हर रोज़
आईना धुंधला हुआ धूल हटाओ हर रोज़
दुश्मन देहरी लांघ घुस चुका घरों में
ग़ैर को भगाओ ध्यान रखो हर रोज़
नीयत में खोट है जान पेहचान नहीं
घुसपेठ हो चुकी सावधान रहो हर रोज़
बिना मांगे लाता जबरन जूठन खुरचन खाना
टर्रा पव्वा पूरी ख़बरदार रहो हर रोज़
सहयोग सहायता के बहाने ईमान के सोदागर
बेजमीर बना रहे सतर्क रहो हर रोज़
फूट डाल चुके कर चीर फाड़ ‘कागा’
ह़क़ हड़प रहे मज़बूत रहो हर रोज़
आज़ाद पंछी
वो जलते आह वाह हम चलते रहे
हमें मिली राह वो हाथ मलते रहे
ह़सद की आग में जल बने राख
हमें मिली हिम्मत वो हाथ मसलते रहे
पिट्ठुओं से पूछा नहीं चले हम अकेले
हमें मिली मोह़ब्बत वो मूर्ख मचलते रहे
हम सफ़र मिल गया राह चलते चलते
हमें मिली स़ोह़ब्बत वो ऊंचे उछलते रहे
ग़ुरूर था ग़ज़ब का रुक थक गये
हमें मिली जन्नत वो ज़हर उगलते रहे
रहबर मिल गया हमें अपना मन पसंद
हमें मिली इज़्जत वो बलते उबलते रहे
कम सामान सफ़र आसान एक गठरी गूदड़ी
हमें मिली उल्फ़त वो उल्टे उलझते रहे
त़ौर त़रीक़ा तकरार का क़दम दर क़दम
हमें मिली ह़िफ़ाज़त वो रंग बदलते रहे
नफ़रत की आग फेलाने वाले नादान नाकाम
हमें मिली केफ़ियत वो बेबस बिदकते रहे
बंद पिंजरे के त़ोत़े रटते राग ‘कागा’
हमें मिली इजाज़त वो बेवजह बकते रहे
रोशन
वत़न का नाम रोशन करना है चलना सीखो
मुल्क का नाम रोशन करना है जलना सीखो
राही बन जाओ राह का मंज़िल की ओर
क़ौम का नाम रोशन करना है बदलना सीखो
दीपक बन जलना होगा बिना बाती बिना तेल
जाति का नाम रोशन करना है बलना सीखो
गुलाब का गुल बनने की ह़स़रत दिल में
ख़ानदान का नाम रोशन करना है महकना सीखो
कांटा बन रहना होगा नुकीला संग फूलों के
ख़ुद का नाम रोशन करना है बहकना सीखो
नर्म सख़्त मिज़ाज एक सिक्के के दो पेहलू
चमन का नाम रोशन करना है चहकना सीखो
अगर सूरज बन रोशन करनी कायनात को ‘कागा’
कायनात का नाम रोशन करना है ढलना सीखो
नर नादान
वो नर नादान जो करे नारी की निंदा
वो नर बेईमान जो करे नारी की निंदा
नो माह़ तक अपनी कोख में पाला पोसा उसको
बोझ उठाया मां ने जान से प्यारा रखा उसको
जब हुआ जन्म सुन किलकारी बजाई थाली ख़ुशी में
बधाई मिली बांटा गुड़ मिठाई पुत्र की ख़ुशी में
बोल बोलना नहीं आता मां ने सिखाया हर शब्द
अब ज्ञानी बन बेठा विद्वान नारी को कहता अपशब्द
ढोल ढोर शूद्र नारी को कहता ताड़न के अधिकारी
नारी नर जननी भगनी संगनी सदेव सम्मान की अधिकारी
नारी लक्ष्मी सरस्वती ऋद्धि सिद्धि ममता क्षमता की मूर्त
नारी वंश वृद्धि की बेल संसार समता की मूर्त
नर नारी का मेल मिटा दे घोर अंधेरा छाया
नर सूरज चांद नारी रोशनी चांदनी कामनी काया माया
ब्रह्मा विष्णु शिव बिना नारी नहीं उत्पत्ति सृष्टि रचना
सरस्वती लक्ष्मी पार्वती बिना नहीं जग में कोई संरचना
‘कागा’ माता बहिन अद्धांगनी का करो आदर सत्कार स्नेह
जीवन सफल हो जायेगा जग करो आदर सत्कार स्नेह
सुखी इंसान
रोटी कपड़ा ओर मकान
लंगोटी छपरा ओर दुकान
मिल जाये समय पर
वो होता सुखी इंसान
नहीं लफड़ा लोभ लालच
नहीं मोह सुखी इंसान
भूख प्यास बुझाने को
अन्न जल सुखी इंसान
सिर छिपाने को छपरा
छाया मिले सुखी इंसान
तन ढकने को कपड़ा
हाथों काम सुखी इंसान
संस्कार युक्त संग संगनी
प्रेम पावन सुखी इंसान
श्रम की कमाई शुद्ध
सोच बुद्ध सुखी इंसान
बंद मुठ्ठी आया अकेला
नंगा बदन सुखी इंसान
खुला हाथ चले जाना
बेबस बंदा सुखी इंसान
दो गज़ ज़मीन कफ़न
दफ़न वास्ते सुखी इंसान
अपना नहीं कोई ‘कागा’
अकेला जाना सुखी इंसान
ज़़मीर
चमक देख चुग़लों की चित्त डग मग हो गया
दमक देख दोगलों की मन जग मग हो गया
चमचों की पौ बारहा रहते हरदम चिकने चुपड़े चुस्त
बिचोलियों की बले बले शाम ढले दिलो दिमाग़ दुरस्त
दाल गलती देखी दलालों की चाल चलती चापलूसों की
शराब कबाब शबाब में लाजवाब बेहतरी चौकीदार चापलूसों की
गधे खाते देखे गुलाब जामुन घोड़ों को नहीं घास
सांप बंद कर दिये टोकरी में सपेरों को विश्वास
नाग पंचमी को पिलाते दूध भर कटोरा कर पूजा
वरना करते वार देख जाये घर में लाठी पूजा
‘कागा’ देख रंग बदरंग दुनिया का ज़मीर नहीं बेचना
उतार चढ़ाव आते रहेंगे जीवन में ज़मीर नहीं बेचना
मां की ममता
मां की ममता का चमकता सितारा बेटा
मां के आंचल में दमकता सितारा बेटा
मां की आंखों का तारा पलक पावड़ा
मां के कलेजे का टुकड़ा प्यारा बेटा
दिल की धड़कन आंखों की फड़कन होता
नन्हा मुन्हा जवान जोशीला जज़्बाती सहारा बेटा
दिल से दूर नहीं आस पास बसता
मिल जुल मुस्काये ख़ुशियों का पिटारा बेटा
मां बेटे जेसा कोई पवित्र रिश्ता नहीं
दिल को सुकून देता हरदम दुलारा बेटा
श्रवण की सेवा मां बाप की अनूठी
हर मां की इच्छा मिले मतवारा बेटा
मां का जीवन बेटे पर क़ुर्बान ‘कागा’
उगता सूरज मां का लाड़ला सवेरा बेटा
प्रशंसा
कब तक करते रहोगे पराई प्रशंसा
कब तक करते रहोगे पराई अनुशंसा
परिजन से प्यार कर हर रोज़
कब तक करोगे पराया भरोसा
ग़ैर की गोद में बेग़ैरत बने
कब तक रहोगे फंदे में फंसा
अपनों की करते बढ़ चढ़ बुराई
कब तक करते रहोगे पराई सुरक्षा
जी ह़ुज़ूरी बन खड़े हो ख़ुदारा
आज़ाद होने की नहीं है मंशा
पराया घर रोशन करने को उतावले
अपनों को क्यों देते झूठा झांसा
जिस जाति कुल में जन्म लिया
वो क्या रखें आप में आशा
ओरों से बोलते मीठे बोल मधुर
अपनों से कब बोलोगे मीठी भाषा
अपेक्षा उपेक्षा में बदल गई ‘कागा’
कब तक देखें हम दोगला तमाशा
बलात्कार
हर रोज़ होता बहिन बटियों का बलात्कार
हर रोज़ होता बहिन बेटियों से दुराचार
हृदय हांफता कलेजा कांपता सुन घिनोनी घटनाऐं
हर रोज़ होता बहिन बेटियों पर अत्याचार
चीख़ चीत्कार चिलाना सुनता नहीं कोई कसाई
हर रोज़ होता बहिन बेटियों का दुर्व्यवहार
गलियारों चौराहों सरे आम होती छेड़-ख़ानी
हर रोज़ होता बहिन बूटीयों पर तकरार
दहेज के लोभी भेड़िये मांगते धन दोलत
हर रोज़ होती बहिन बेटियां बलि हज़ार
ह़वस़ का शिकार होती बदनसी़ब दीन हीन
हर रोज़ होता बहिन बेटियों का बंटाधार
रिश्ते नाते कलंकित देखे कलयुग में ‘कागा’
हर रोज़ होता बहिन बेटियों का तिरस्कार
बंटवारा
बंटवारा कर बंटाधार कर दिया इंसान का
इंसान ने नुक़स़ान कर दिया इंसान का
प्रकृति के नियम क़ानून तोड़े इंसान ने
धर्म को बांटा भागों में इंसान ने
वर्ण व्यवस्था लागू की ऊ़च नीच की
जाति को छिन्न भिन्न ऊंच नीच की
इंसान ने हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बनाये
पूजा पाठ के अलग प्रथा नियम बनाये
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे भगवान के घर
मूर्ती काबा क्रास समाधी स्थल दरगाह दर
‘कागा’ नाम राम रहीम अल्लाह गाड वाहगुरु
इबादत में अलह़दगी बंदगी नमाज़ सत गुरु
नारी
नारी नर पर भारी नारी नर जननी
नारी भगनी नारी मां ममता नारी संगनी
बिना नारी जग सूना नारी आंगन उजाला
नारी नर की खान नारी ज्योति ज्वाला
नारी लक्ष्मी सरस्वती सावित्री करती सिंह सवारी
नारी माता सीता पार्वती ऋद्धि सिद्धि बलिहारी
नारी प्रथ्वी अग्नि नारी चमकती बिजली बन
मारी जाती कोख में कन्या भ्रुण बन
चित्ता चढ़ती सत्ती प्रथा के बहाने जलती
देहेज की बलि दानवों के हाथ जलती
दरिंदों की दासी होती काम वासना शिकार
मानव बनता दानव उत्पन्न होते पशु विकार
‘कागा’ नारी वंश वृद्धि की बेलड़ी सुंदर
करो नारी का सम्मान मन चित्त सुंदर
कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा
पूर्व विधायक
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