महल | Mahal Bhojpuri Kavita
महल
( Mahal )
धूल में मिल के सब धूल भईल
का पताका , का सिंघासन कवन भुल भईल
आज दुनिया देख रहल चुप चाप ओके
छप पन्ना में पढ़ल इतिहास भईल
शान, शौकत आऊर तमाशा सब खाक भईल
का पता कवन आग में जल के राख भईल
तोप दागत रहे कबो सलाम ओके
सजल सजावल आज सब बरबाद भईल
झर रहल ऊ महल कंकाल भईल
धर गोड कबर में बचल निशान भईल
चिंख भी मिट गईल बा देवार के
आज ऊ दुनिया जईसे शमसान भईल l
रचनाकार – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
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