मै मुजरिम हू | Main Mujrim Hoon
मै मुजरिम हू
( Main Mujrim Hoon )
मै मुजरिम हू मुझे सजा दो
मै बीमार हू मुझे दवा दो
कुछ नही इल्जाम तुम लगा दो
सजा कम लगे तो फांसी चडा दो
मै दर्द ए मोहब्बत मै हू
तुम कहो तो मै बता दू
एक कतरा जो आंखो से नही रवा हुआ
तुम कहो तो आंखो से आंसू बहा दू
एक हुक्म करना है तुम्हे ए दिल ए आरजू
तुम चाहो तो मै खुद को सजा दू
तुम किनारा बने थे ढूंबते वक्त
तुम कहो मै खुद को आग लगा दू
मेरी रात गुजर जाए सुकून से
ऐसी तो कोई मुझे तुम दुआ दो
मेरे सुकून की वजह हो तुम
तुम कहते हो बेवजह हो तुम
ख्याल आता है तुम्हारा मुझे हर दम
तुम्हारे सिवा नही मेरे पास कुछ हमदम
एक कसर रहती है तुम्हारी नफरत मै
जमाना दे दुआ तुम कहते हो बद्दुआ दो
नाज़ अंसारी
बदांयू ( उत्तर प्रदेश )