बे-अंदाजा हद से गुज़रे तो
बे-अंदाजा हद से गुज़रे तो दर्दो के दवा पाया
दवा कुछ ऐसा पाया की दर्द ही बे-दवा पाया
इश्क़ ने क़रार-ए-ज़ीस्त का खबर क्या पाया
उम्र भर की तपिश तृष्णागि ने एक आहा पाया
असर दुवाओ में है, हमने मगर बे-असर पाया
मुश्किल से है हमने ये बे-असर दुआ पाया
जादा-ब-जादा भटकते हुए तमाम राहों में
दूर कहीं जंगल में होकर अपना रास्ता पाया
प्यास का किनारा होता ही कहाँ है, प्यासा में
जिधर जिधर गया उधर ही बस दरिया पाया
किसी को कहाँ मिलता है अर्ज़-ए-सजदा की मौक़ा
मशक़्क़त से है ‘अनंत’, आपने मुक़म्मल खुदा पाया
शायर: स्वामी ध्यान अनंता