मकर संक्रांति

Hindi Poetry -मकर संक्रांति

मकर संक्रांति

 

चुड़ा गुड़ चीनी दही
तिल का लगाओ भोग
उत्तरायण का पर्व आज है
मिलकर मनाओ लोग
खिली धूप है
ले बच्चों को किसी मैदान में जाएं
ठंडी ठंडी हवा के झोकों संग
खुलकर पतंग उड़ाएं।
सूरज की तीखी किरणों से
तन मन को नहलाएं
सर्दी के भय को मन से निकाल लाएं
बैठकर अपनों संग तन्हाई मिटाएं।
कुछ इधर की कुछ उधर की
बातें खूब बतियाएं
मन में बैठे मैल द्वेष को एक पल में मिटाएं
गुड़ की मिठास यूं दूनी हो जाए
यही मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी कहलाए,
मकरसंक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

 

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नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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