मकर संक्रांति पर्व | Makar Sankranti Parv
मकर संक्रांति पर्व
( Makar sankranti parv )
उड़ी उड़ी रे पतंग देखो उड़ी रे पतंग,
मन हुआ है मतंग देख कर ये पतंग।
कभी इधर चली तो कभी उधर मुड़ी,
आसमान में चहुं ओर ये पतंग उड़ी।
नीले पीले हरे गुलाबी सब रंगों में रंगे,
जैसे आसमान में इंद्रधनुष आज हैं टंगे।
पतंग उड़ाकर लोग खुशियां दिखलाते हैं,
तिल गुड़ के मिठास से यह पर्व मनाते हैं।
इस दिन से ही होता है खर मास समाप्त,
सब शुभ आयोजन करने होता मुहूर्त प्राप्त।
इस पावन अवसर में गंगा सागर से मिलती,
पितृ जनों की तृप्ति हेतु जनता स्नान है करती।
सूर्य उत्तरायण का अवसर इसमें होता प्यारा,
मकर संक्रान्ति का पावन पर्व है सबसे न्यारा।
रचनाकार –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )