man ke jale

दीपोत्सव नजदीक है इतनी सारी तैयारियांँ, साफ- सफाई अभियान जोरों पर है घर- आंँगन व बाहर।
कहते भी है कि सफाई रहती है तो भगवान हमारे नजदीक रहते हैं। सच है स्वच्छ तन ,स्वच्छ घर- आंगन ,स्वच्छ परिवेश आंँखों को लुभाता है ।

तन-मन को स्वस्थ रखता है। किसे भला अच्छा नहीं लगता साफ सफाई हो , कोना- कोना चमके और चारों तरफ हो सुंदर मन का मधुर हास। साफ- सुथरे वातावरण में जगमगाती दीपों की लड़ियांँ, रोशनियांँ प्रफुल्लित तो कर ही देती हैं और देहरी की चमक को द्विगुणित।

तमाम सारे जाले ,कूड़ा करकट , गंदगी कोनों -कोनो से हम निकालते हैं । उत्सव से पहले यह एक महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। क्या हम स्वस्थ मन के लिए भी कुछ तैयारी करते हैं! कुछ साफ- सफाई अभियान शुरू करते हैं या वहांँ पर जाले ज्यों के त्यों बने रहते हैं!

बाहरी चमक- दमक में क्या हम मन के जालों को झाड़ पाते हैं! घर को सुंदर करने के लिए, अपने भवनों को बेहतर करने के लिए झाड़ फानूस लगते हैं अपनी स्वयं की भावनाओं को बेहतर करने के लिए क्या उपाय करते हैं !

महंगी से महंगी नक्काशी वाली चीजों से, जड़ाऊ आभूषणों से घर को और स्वयं को सजाते करते हैं। क्या ईर्ष्या -द्वेष ,काम, क्रोध अहंकार के जाले जो हमारे मन पर न जाने कब से लगे हैं जिनको हम निरंतर यहांँ- वहांँ, यत्र -तत्र दिखाते हैं और गंदगी बिखेरते हैं।

क्या उस पर भी हमारी नजर है! हमने गौर किया है क्या! हमने मन के जालों को साफ करने का कभी उपक्रम ,प्रयत्न किया है। हमने कभी सोचा है कि हमारे विचार कहांँ-कहांँ तक किसी और दूर तक पहुंँच सकते हैं कितनों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

तो क्यों न हम ऐसे विचारों का प्रचार प्रसार करें जिससे दूसरे व्यक्ति का जीवन संवरे या फिर सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो समाज में। हमारे अंदर इतनी दूरदर्शिता होनी चाहिए कि हमारे द्वारा किए गए हर कर्म का सुफल निकले। मानवीयता को समर्पित हो।इंसानियत की रक्षा करें।

छल -कपट, धोखा, बेईमानी ,झूठ ,अपराध अन्याय, शोषण ऐसे तानों – बानो से गुंँथा हुआ रहता है मन और इसी तरह के कर्म हम संसार में समझ में करते रहते हैं और हमें पता भी नहीं रहता है क्योंकि लगता है सभी ऐसे हैं! लेकिन एक नन्हा बच्चा जो मानव का सच्चा शिक्षक है क्या उसके हृदय में इस तरह की भावनाएंँ होती हैं, नहीं। जब हम भगवान को प्रसन्न करना चाहते हैं तो हम भगवान के गुणों एक तरफ रख कर ,राक्षसी गुण और प्रवृत्तियों को क्यों अपनाते हैं!

आज के दौर की तकनीकी युग , सोशल मीडिया के दौर की बात कर ली जाए तो यहांँ भी हम अपनी उपस्थिति से नकारात्मकता का भीषण बवंडर फैलाते हैं । कई प्रोजेक्टेड लोग कोई भी अच्छी , सकारात्मक पोस्ट स्वयं लिखते हैं न किसी अन्य की पोस्ट पर कोई टिप्पणी करने के लिए तैयार रहते हैं।

खुद कोई अच्छी पहल करते नहीं । अच्छी बातों की तारीफ करने के लिए भी मुंँह नहीं खुलता है । नकारात्मक पोस्ट पर गूंगे भी बढ़ बढ़ कर बोलने लगते हैं। कोई अच्छी पोस्ट है उस पर तो टिप्पणी और कमेंट बहुत कम नजर आएंगे जो विवादास्पद पोस्ट है या जिसमें नकारात्मक बातों का उल्लेख है उस पर टिप्पणियों की भरमार लगी रहती है यह सब किस तरफ इशारा करता है मानव मन कहांँ जा रहा है!

छिद्रान्वेषण व नकारात्मक बातों का प्रचार-प्रसार प्रसार करने के लिए और ईर्ष्या ,द्वेष के बीज बोने के लिए! अगर कोई सज्जन कुछ कहे तो अभद्रता, उद्दंडता और असभ्यता तो आज के दौर की एक महत्वपूर्ण रीति है क्योंकि सारे सुंदर रीति-रिवाज हम भूल गए हैं जिनसे मानव को मानव कहा जाए और सही दिशा में खुद को ले जा कर जिंदगी को संवारा जाए।

हम इतने बनावट दिखावट शो ऑफ और नकली पान के अभ्यास हो चुके हैं कि जिस तरह महंगे-महंगे आभूषण कपड़ों में हम खुद को प्रेजेंट करते हैं इस तरह बढ़-चढ़कर अपने आप को शरीफ दिखने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते जबकि मन के अंदर इतनी दुर्व्यसन और गलत ,नकारात्मक बातें भरी रहती हैं उसकी तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता।

अभी तो यह हो गया कि यह कैसे ,किन-किन प्रकारों से बिना मेहनत किए हुए दूसरों का पैसा अगर मिल जाए तो बस ऐश! जबकि हमारे शास्त्र, पुराण कहते हैं कि छल कपट ,धोखा बेईमानी , काम ,क्रोध से मन दुर्बल होता है, मन की शक्ति खत्म होती है और हम दोनों तरह से रुग्ण हो जाते हैं तन से और मन से।

।।निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।

भगवान तो स्वच्छ सरल, निर्मल मन को ही प्राप्त होते हैं। मुश्किल है लेकिन कठिन नहीं “करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान”। निरंतर स्वस्थ और श्रेष्ठ चिंतन हमारे मन को सही दिशा में मोड़ सकता है । इसका प्रयास करना चाहिए तो उत्सव मनाए साफ-सफाई करें। स्वस्थ रहें और अपने निर्मल मन की उजास से चमकें। नकलीपन, बनावट ,आडंबर , प्रपंच ,फेक ,झूठे तरीकों से नहीं।

 

@अनुपमा अनुश्री

( साहित्यकार, कवयित्री, रेडियो-टीवी एंकर, समाजसेवी )

भोपाल, मध्य प्रदेश

 [email protected]

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