निंदा से मन मलीन | Man Maleen
निंदा से मन मलीन
( Ninda se man maleen )
करना चाहो जगत में पुण्य के सब काम करो।
निंदा करके तुम खुद को यूं ना बदनाम करो।
क्यों मन मलीन करते हो क्या ठहरा पानी है।
निंदा करना नीचता की बस एक निशानी है।
क्यों कलह करते हो तुम खड़ी दीवार ढहाते हो।
रिश्तो की नाजुक डोर को क्यों आग लगाते हो।
क्या रस आता है तुम्हें क्यों मन मलीन करते हो।
फूट डालने का पाप सर पर भार क्यों धरते हो।
आग अगर लगी तो लपटें कल उधर भी आएगी।
निंदा की भीषण ज्वाला लंका सारी जल जाएगी।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )