Kavita Agar tu
Kavita Agar tu

अगर तू जो एक किताब है

तुम्हें पढ़ना चाहता हूं
तेरे हर एक पन्ने को
अगर तू जिंदगी है
जीना चाहता हूं
आहिस्ता-आहिस्ता पूरी उम्र
अगर तू फूल है
तो मैं तेरा रंग बनना चाहता हूं

अगर तू जो एक किताब है
तुम्हें पढ़ना चाहता हूं
तेरी तस्वीर में बिखरे रंगों का
एक एहसास बनना चाहता हूं
हां तेरा इतिहास बनना चाहता हूं

अगर तू जो एक किताब है
तुम्हें पढ़ना चाहता हूं
एक-एक दिन बिताई है जो तुमने
कई सदियां की तरह
तेरे सूखे हुए होठों की
मुस्कान बनना चाहता हूं

हां तेरे किताब के
लिखें हुए पन्ने की
इबादत बनना चाहता हूं

तूं जो एक किताब है
तुम्हें पढ़ना चाहता हूं

 नवीन मद्धेशिया

गोरखपुर, ( उत्तर प्रदेश )

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