मन मानता नहीं | Poem man manta nahin
मन मानता नहीं !
( Man manta nahin )
उसी से मिलनें को मन मानता नहीं!
मुहब्बत से वही जब बोलता नहीं
वही ऐसे गुजरा है पास से मेरे
मुझे जैसे वही के जानता नहीं
सफ़र यूं जीस्त का तन्हा नहीं कटता
अगर वो साथ मेरा छोड़ता नहीं
नहीं होती जुदा ख़ुशी जीवन से जो
ग़म की बरसात से हूं भीगता नहीं
नहीं उसके नगर मैं लौटकर आता
अगर वो आज मुझको रोकता नहीं
भरे है नफ़रतें वो “आज़म” आंखों में
मुहब्बत से मुझे वो देखता नहीं