आओ खोलें मन की तहें | Mann ki Tahen
आओ खोलें मन की तहें
( Aao khole mann ki tahen )
आओ खोले मन की तहें कुछ सुने कुछ कहें
खोल दे गांठे हम भी दर्द मन के जो दबे रहे
इक दूजे के दुख बांटे पीर मन की सब कहे
अंतर्मन में व्यथा दबाए चिंताओं में क्यों रहे
सुख-दुख धूप छांव से जीवन में आते जाते
खुशियों के दीप जला गुलशन रहे महकाते
दिल की बातें होठों पे बहने दे घट भावों को
खोल दे वो परतें पुरानी पीर और प्रवाहों को
दुखती रग पे रखे हाथ पीर मन की भी सुने
दर्द सारे भूला दिल से ख्वाब सुरीले भी बुने
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )