May Danava | मय दानव (महाभारत)
मय दानव ( महाभारत )
( May Danava )
खाण्डव वन में मय दानव ने, इन्द्रप्रस्थ रच डाला।
माया से उसने धरती पर,कुछ ऐसा महल बनाया।
अद्भुत उसकी वास्तु शिल्प थी,कुछ प्रतिशोध भरे थे,
जिसके कारण ही भारत में, महाभारत युद्ध कराया।
कौरव ने जब खाण्डव वन को, पाण्डवों को दे डाला।
अर्जुन ने उस निर्जन वन में फिर, भीषण आग लगाया।
लेकिन उस वन में मय दानव, का कुल वंश जला था,
वास्तुकार मय दानव ने ही फिर, इन्द्रप्रस्थ रचा था।
माया के कारण जल में थल,थल में जल दिखता था।
अमरावती सा इन्द्रप्रस्थ, उगता सुरज लगता था।
धन दौलत अरू कृर्ति अद्वितीय थी,पाण्डव की नगरी में,
लेकिन इक प्रतिशोध छुपा था, रक्तिम सी नगरी में।
द्रौपदी ने अपमान सुयोजित, जैसे ही कर डाला।
दुर्योधन के मन में उसने, विष प्याला धर डाला।
तब जा करके ध्रृतक्रीडा में, शकुनी ने पाशे डाले,
द्रौपदी का वह चीरहरण,कुरूओ के भाग्य बिगाडे।
युद्ध महाभारत का भीषण, जिसमें सबकुछ खाक हुआ।
विकसित थी वो पूर्ण सभ्यता, उसमें सबकुछ नाश हुआ।
प्रतिशोध की ज्वाला मन में, दबी हुई चिंगारी है,
शेर लिखे इक शोध पत्रिका, बोलो आपकी बारी है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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