15 अगस्त (कविता)

मेरा जिगर तिरंगा | Mera Jigar Tiranga

मेरा जिगर तिरंगा !

( Mera jigar tiranga )

मेरा अमर तिरंगा है, मेरा जिगर तिरंगा है।
रग – रग में यही बसता, ऐसा ये तिरंगा है।

मेरी आन तिरंगा है, मेरी शान तिरंगा है,
कोई दुश्मन देखे इसे, दहलाता तिरंगा है।

तेरा भी तिरंगा है, मेरा भी तिरंगा है,
तू नजर उठा के देख, नभ में भी तिरंगा है।

चाँद पे तिरंगा है, मंगल पे तिरंगा है,
दुश्मन को फतह करता, ऐसा ये तिरंगा है।

गोरों को भगाया जो , वो यही तिरंगा है,
महफूज़ रखे ये वतन, ऐसा ये तिरंगा है।

गांधी का तिरंगा है, बिस्मिल का तिरंगा है,
जिसने भी लुटाया लहू उसका भी तिरंगा है।

हर लब पे उठे जो नाम, ऐसा ये तिरंगा है।
जन -जन के हृदय बसता,ये वही तिरंगा है।

मेरी नजर जहाँ जाती, हर जगह तिरंगा है।
कोई जगह बताए मुझे,जहाँ नहीं तिरंगा है।

Ramakesh

रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),

मुंबई

यह भी पढ़ें :-

मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand par Kavita

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *