मेरे दिल की बस्ती

मेरे दिल की बस्ती

मेरे दिल की बस्ती


मेरे दिल की बस्ती क्यों इतनी है सस्ती
न कोई हलचल न कोई मस्ती
लोग आकर चले जाते हैं
नहीं रुकती कोई हस्ती।।

मैं भी सोचता हूं कोई आकर गुलज़ार करें
थोड़ा रुक कर यहां इंतजार करें
कुछ बहार लाए जिन्दगी में
हमसे भी कोई प्यार करें।।

जिंदगी का मेरे कोई थोड़ा किनारा बने
साथ साथ चलने का सहारा बने
मजधार में अकेले कब तक
कोई तो हमारा बने ।।

दु:ख दर्द को आकर हमारे कोई बाटे
दिल की गहराइयों को थोड़ा पाटे
अपना अधिकार कुछ जताए
हमें भी तो कोई डांटे।।

कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही ( उत्तर प्रदेश।)

यह भी पढ़ें :-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *