मेरे होंठों की उसने हंसी छीन ली
मेरे होंठों की उसने हंसी छीन ली
तीरगी बख़्श दी रोशनी छीन ली।
मेरे होंठों की उसने हंसी छीन ली।
मुस्कुराती थी जो मेरे रुख़ पर सदा।
उसने ख़ुशियों की वो चांदनी छीन ली।
जाम नज़रों से उसने पिला कर मुझे।
मेरे होंठों की सब तिश्नगी छीन ली।
मुस्कुरा कर मुझे इक नज़र देख कर।
मेरी आंखों की उसने नमी छीन ली।
चैन देती थी तन्हाई में जो मुझे।
उसकी आमद ने वो बेकली छीन ली।
चाह कर भी हंसी आ न पाएगी अब।
उसने मेरी हंसी सर्मदी छीन ली।
ज़ातो मज़हब के नामों पे भड़के हैं जो।
उन फ़सादों ने दिल की ख़ुशी छीन ली।
चुप ही रहते थे हम तो हमेशा फ़राज़।
ज़ुल्म ने आपके ख़ामुशी छीन ली।
पीपलसानवी