मेरे मन के आंगन में आज | Mere Man ke Aangan mein
मेरे मन के आंगन में आज
( Mere man ke aangan mein aaj )
मेरे मन के आंगन में आज
मेरी मां की छवि समाई है
जिसके पावन आंचल में
मेरी सारी खुशियां समाई हैं
हर मुश्किल की घड़ी में
मैंने मां का आंचल थामा है
जिसकी छाया ने मुझको
हर पल जीना सिखाया है
मां ही बच्चों के सुख-दुख की
भागीदार होती है
कठिनाई की हर घड़ी में
ढाल बनकर खड़ी होती है
मां ही है जिसने हमको
आगे बढ़ना सिखाया है
हर घड़ी में,हर मुश्किल में
हंसकर जीना सिखाया है
मां का सदा सम्मान करो
बुढ़ापे की लाठी बनकर
अपना फ़र्ज़ अदा करो।
नीलम सक्सेना
कोटड़ा ( अजमेर )