मेरे ज़िन्दगी का तुम एक हक़ीक़त हो | Ghazal tum ek haqeeqat ho
मेरे ज़िन्दगी का तुम एक हक़ीक़त हो
( Mere zindagi ka tum ek haqeeqat ho )
मेरे ज़िन्दगी का तुम एक हक़ीक़त हो
उम्र भर की मेरी, तुम तमाम दौलत हो
यह सिलसिला यहीं ख़त्म होने वाला है
तुम मेरी पेहली और आंखरी मुहब्बत हो
तुझे चाहा है मैंने हर दम खुद से बढ़कर
में खुद नहीं चाहता इस काम से फुर्सत हो
तुम्हारी सांसें से हमारी सांस चल रहा है
बे-मुरव्वत नहीं, अदा-ए-मुहब्बत भी मुरव्वत हो
तुम सिर्फ मेरी मुहब्बत नहीं हो, नहीं हो
मेरे ज़िन्दगी का लत, ज़िन्दगी का आदत हो
‘अनंत’ का तम्मन्ना है की तेरा फ़िराक़
यही मेरी ज़िन्दगी का आंखरी वहसत हो
शायर: स्वामी ध्यान अनंता