
मेरे हाथ को यूँ मजबूर ना कर
( Mere hath ko yoon majboor na kar )
मेरे हाथ को यूँ मजबूर ना कर कोई तस्बीर बनाने के लिए
ता-उम्र साथ निभाने की वादा ना कर अभी छोड़ जाने के लिए
मेरे कमरों में तुम्हारी तस्बीर और धुवां ही धुवां है
कुछ तो दिल की चाहिए होगा ना सजाने के लिए
पूछ जा कर मेरे हम-नशीं, मेरे दोस्तों से बात क्या है
वह बताएंगे, रोज तुम्हे याद करता है भुलाने के लिए
मौला ने बे-मिसाल करम-ए-दर्द से नवाज़ा है हमें
अब हम यूँ ही मुस्कुरा भी देते है तो दिखाने के लिए
बे-हिसाब प्यार किया और बहोत रोया बंद कमरे में
टुटा था जो दिल और दर्द भी था, रोया में और टुटाने के लिए
हमें यह बात गवारा नहीं अगर ये तस्कीन-ए-दिल तुम्हारा नहीं
मौत सायद है क़रीब, उसे और क़रीब लाया जाए सुलाने के लिए
वैसे हमारा हाल है खराब, इससे तो और खराब होना चाहिए
‘अनंत’ के बे -ताब दिल को और बे -करार करने के लिए
शायर: स्वामी ध्यान अनंता