न कर फरियाद दुनिया से
न कर फरियाद दुनिया से

न कर फरियाद दुनिया से

 

न कर फरियाद दुनिया से सहारे भी नहीं मिलते।
कभी मझधार में आकर किनारे भी नहीं मिलते।।

 

गुलो-गुलजार की पहले सी वो रौनक कहां है अब ?
यूं मौसम ए ख़िजां में अब बहारें भी नहीं मिलते ।।

 

यहां जीवन सभी का ही हमें वीरां बहुत लगता।
जहां में वो हसीं सबको नज़ारे भी नहीं मिलते ।।

 

हकीक़त को समझ ले तूं जमीं पर ही सदा रह कर।
यहां सबको चमकते हुए सितारे भी नहीं मिलते।।

 

यहां किस्से किताबों में है सब बातें वफाओं की।
सभी को तो यूं सहरा में वो धारे भी नहीं मिलते।।

 

 

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कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)

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