Meri chaahat
Meri chaahat

मेरी चाहत

( Meri chaahat ) 

 

परखने की कोशिश तो सभी ने की
समझना किसी ने न चाहा
गुजर गई जिंदगी इम्तिहान में
मगर अब
फर्क नहीं पड़ता की कौन क्या समझता है मुझे
मैं स्वयं में सत्य निष्ठ हूं और संतुष्ट भी

ना लोभ है ना उम्मीद की लालसा
मिले सम्मान या अपमान
सभी स्वीकार्य है मुझे
खुशी इस बात की है कि
मैने अपना कर्म ईमानदारी से निभाया है

आज भले संतुष्ट न हो कोई
कल करेंगे जरूर याद मुझे
वर्तमान चाहे जैसा रहा हो
भविष्य में ही सही पहचानेंगे जरूर मुझे

अब ऊपर आ गया हूं हर चाहत से
कुछ नहीं चाहिए अब
सांसों के आखिरी लम्हे तक
मेरा कर्तव्य ही मेरी पूंजी है

ईश्वर से आंखें मिला सकूँ
यही चाहत थी मेरी
और मैं इसमें सफल रहा हूं
यही मेरी उपलब्धि भी है

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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