Kavita Andhapan

अंधापन

( Andhapan )

मेल, एक्स्प्रेस का नही, अब
बुल्लेट ट्रेन या हवाई सफर का जमाना है
यादों के फूटे हुए घड़े मे
अब यादेँ भी अधिक देर तक नही ठहरती
भागती हुयी रफ्तार मे
वर्तमान बहुत तेजी से अतीत में
बदलने लगा है

नये की चाहत में
पुरानी वस्तुयें हि नही
पुराने लोग और पुराने रिश्ते भी अब
यादों की गली से होते हुए
अंधेरे में विलीन होते जा रहे हैं

रहा नही अब कुछ ,पुराने जैसा
न रिश्ते नाते न लगाव अपनापन
खंडहर होते मकान की तरह
लोगों की सोच भी अब
महल की यादगार जैसा
कुछ नहीं रहा

तलाश तो है सुकून की
पर कहाँ, किसी को पता नही
जा रहे हैं कहाँ, किसलिये
किसी को पता नही
खुली आँख में अंधापन लिए
उजाले की चाहत
सिवा मूर्खता और कुछ नहीं

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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