मुक्तक मां | Muktak Maa
मुक्तक मां
( Muktak Maa)
मां की तरफ़ से सुन लो ये पैगाम आया है
उसी पैग़ाम पर यारों हमारा नाम आया है,
लिखूंगा मैं वतन ख़ातिर वतन पर जान दे दूंगा,
वतन के ही हिफ़ाजत का मुझे ये काम आया है।
झूठ का मै दम दिखाना चाहता हूं,
सबके दिल का गम दिखाना चाहता हूं
मुफलिसी ने मार दी एक बाप को,
ये नया मौसम दिखाना चाहता हूं।
गुजरता हूं जब भी मैं तेरे मोहल्ले की गली से,
मेरी खुशबू से तुझे तेरा श्वान बता देता है,
फिर तेरा छत पर जाना मुड़ मुड़ कर देखना मुझे…
तेरे मोहल्ले की लड़कों की परेशानी बढ़ा देता है।
ओढ़कर घूंघट कोई भी ऐसा न काम कीजिए,
देकर गाली सास ससुर को न बदनाम कीजिए ,
पहनो लाख जींस टॉप हमे कोई मलाल नहीं…
भूखे न सोएं माता पिता ऐसा कुछ काम कीजिए।
कवि – धीरेंद्र सिंह नागा
(ग्राम -जवई, पोस्ट-तिल्हापुर, जिला- कौशांबी )
उत्तर प्रदेश : Pin-212218