Hindi Kavita On Life | Hindi Kavita -मुसाफिर
मुसाफिर
( Musafir )
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मुसाफिर तंन्हा हूँ मै, साथ चलोगे क्या, तुम मेेरे।
है मंजिल दूर, सफर मुश्किल , क्या साथ चलोगे मेरे।
यही है डगर, एक मंजिल है तो फिर, साथ चलो ना,
सफर कट जायेगा दोनो का, हमसफर बनोगे मेरे।
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करेगे दुख सुख की बातें, बातों से खनक बढेगी।
हमारे दिल से तेरे दिल की भी, कुछ ललक बढेगी।
ना सोचो तंन्हा हो तो, बात करे हम दिल से दिल की,
हमारे बातों से लोगो की भी कुछ धडक बढेगी।
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शेर के शब्द सुनो तो, रस्ता यू ही कट जायेगा।
चलेगे साथ अगर तो मंजिल, पास नजर आयेगा।
टटोलो दिल को अपने साथ शेर के चलना है क्या,
तुम्हारे दिल के दरवाजे पे , शेर नजर आयेगा ।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )