मुस्कान ढूंढती है | Muskan Dhundhati Hai
मुस्कान ढूंढती है
( Muskan Dhundhati Hai )
जो लुट चुका है अब वो सम्मान ढूँढती है ।
नन्ही कली चमन में मुस्कान ढ़ूढती है ।
काँटों के वास्ते वो गुलदान ढूँढ़ती है
नादान है जहाँ में इन्सान ढूँढती है
बेबस है ज़िन्दगी और गर्दिश में भी सितारे
अब मौत का वो अपने परवान ढूँढती है
मिलती न दर्दे दिल की उसको दवा भी कोई
देते हैं चैन जो वो लुकमान ढूँढती है
ज़ख़्मों की अब न परवा तानों की भी नहीं अब
बस भीड़ में वो अपनी पहचान ढूँढती है
ढूँढ़ें नहीं वो हीरा ढूँढें नहीं वो मोती
जीने का बस जहाँ में सामान ढूँढती है
जज़्बात ही नही कुछ जब शाइरी में तेरी ,
मीना कलाम में क्या अरकान ढूँढती है ।
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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