न जाने कौन हूं मैं

न जाने कौन हूं मैं | Kaun hoon main kavita

न जाने कौन हूं मैं

(  Na jane kaun hoon main )

 

न जाने कौन हूं मैं…

गहन तिमिरान्ध में प्रकाश हूं मैं,

छलकते आंसुओं की आस हूं मैं

गृहस्थ योगी यती संन्यास हूं मैं,

विरह कातर अधर की प्यास हूं मैं।

किसकी ललचाई दृगन की भौंन हूं मैं।।

न जाने कौन हूं मैं….

सृष्टि का सृजक पालक संहार हूं मैं,

सूक्ष्मतम से ब्योम का आकार हूं मैं,

नाव माझी नदी और पतवार हूं मैं,

प्रकृति में प्रस्वास का संचार हूं मैं।

सर्व समरथ सिद्ध हूं पर किस अर्णव का लोन हूं मैं।।

न जाने कौन हूं मैं…

भूख से ब्याकुल उदर की पीर हूं मैं,

स्वेद के रंग में रंगी प्राचीर हूं मैं,

जला दे मृतचीर ऐसा नीर हूं मैं,

सूर्य शशिमणि दीप सागरछीर हूं मैं

है विराट स्वरूप मेरा फिर भी लगता बौन हूं मै।।

न जाने कौन हूं मैं…

 

लेखक: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)

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