Na Kare Koi

न करे कोई 

( Na Kare Koi )

 

अम्ल ऐसा हो कि रुसवा न करे कोई!
सरे – राह पत्थर रक्खा न करे कोई!

कहां लेके ये जाएगी नाकामियां अपनी
मुल्क में इमां का सौदा न करे कोई!

मसल फूलों को डाला आवेश में उसने
संगदिल को चुभा कांटा न करे कोई!

दर्द इसलिए भी बयां नहीं करता वो
खौफ है फिर ज़ख्म हरा न करे कोई!

ये कैसा दौर है अपनों में लोग तन्हा
खुद ही खुद का वास्ता न करे कोई!

छुपा के रखता है किरदार भी ज़माने से
बजाहिर लोग शिकवा न करे कोई!

मिलते हैं किताबो में सच्चे प्यार के किस्से
अब मोहब्बत में वफ़ा न करे कोई !!

 

 शायर: मोहम्मद मुमताज़ हसन
रिकाबगंज, टिकारी, गया
बिहार-824236

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