न करे कोई | Na Kare Koi
न करे कोई
( Na Kare Koi )
अम्ल ऐसा हो कि रुसवा न करे कोई!
सरे – राह पत्थर रक्खा न करे कोई!
कहां लेके ये जाएगी नाकामियां अपनी
मुल्क में इमां का सौदा न करे कोई!
मसल फूलों को डाला आवेश में उसने
संगदिल को चुभा कांटा न करे कोई!
दर्द इसलिए भी बयां नहीं करता वो
खौफ है फिर ज़ख्म हरा न करे कोई!
ये कैसा दौर है अपनों में लोग तन्हा
खुद ही खुद का वास्ता न करे कोई!
छुपा के रखता है किरदार भी ज़माने से
बजाहिर लोग शिकवा न करे कोई!
मिलते हैं किताबो में सच्चे प्यार के किस्से
अब मोहब्बत में वफ़ा न करे कोई !!