नाम मुहब्बत रखा गया
नाम मुहब्बत रखा गया
दुनिया को इस तरह से सलामत रखा गया
दो दिल मिले तो नाम मुहब्बत रखा गया
गर वक़्त साथ दे तो बुलंदी पे हैं सभी
रूठा अगर तो नाम कयामत रखा गया
फैलाया हाथ हमने किसी के न सामने
ख़ुद्दारियों को सारी अलामत रखा गया
सब कुछ लुटाया उसने हमारे ही वास्ते
माँ का भी नाम इसलिए जन्नत रखा गया
पहचान हमको ग़ज़लों से यारा मिली कहाँ
शाइर नहीं ये तर्के -हक़ीक़त रखा गया
लिखदी ग़ज़ल है आज ये मीना ने ख़ून से
उनवान ख़ूब इसका भी उल्फ़त रखा गया
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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