नयी रोशनी
नयी रोशनी
अंधेरों की बाहों से छूटकर आई है,
एक उम्मीद की किरन जो जगमगाई है।
थमी थी जो राहें, अब चल पड़ी हैं,
दिलों में नयी रोशनी जो घर बसाई है।
खामोशियों की परतें अब पिघलने लगीं,
अधूरी सी कहानियां अब संवरने लगीं।
हर कोना जो सूना था, वो चमक गया,
नयी सुबह की आहट दिल को छूने लगी।
दिकु, तेरी मुस्कान वो रोशनी लाती है,
जो हर घाव को चुपचाप सहलाती है।
तेरे साथ से ये दुनिया संवरती है,
तेरे बिना हर रोशनी धुंधली सी लगती है।
अब ना डर है किसी अंधकार का,
समय है, नयी रोशनी का, नये विचार का।
तेरे संग से ये जीवन रोशन सा लगता है,
मेरे जीवन में हर पल नयी उम्मीद का दरवाजा खुलता है।
चलो मिलकर नए ख्वाब को सजाते हैं,
रोशनी से नए रंगों को जगाते हैं।
तेरे संग हर अंधेरा हार जाएगा,
नयी रोशनी में हमारा इश्क़ फिर से खिल जाएगा।

कवि : प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
सुरत, गुजरात
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