नरक का द्वार | Narak ka dwar | Kavita
नरक का द्वार
( Narak ka dwar )
नैन दिखा मां बाप को,
खोले नरक के द्वार।
अभिशापों की जिंदगी,
मत जीओ संसार।
कच्ची कलियां नोंचतें,
करते जो पापाचार।
नरक द्वार खोलते,
पापी वो नरनार।
स्वांग रचा छद्म करे,
करते जो लूटमार।
दीन दुखी की हाय ले,
जाते नरक के द्वार।
मिथ्या बोले छल करे,
कपट का करे व्यापार।
नरक नसीब हो उनको,
नैया डूबे मंझधार।
मीत होय धोखा करे,
मधुर करे व्यवहार।
हृदय झांक देखिए,
खुला नरक का द्वार।
अपनों से घृणा करे,
बात बात तकरार।
कलह क्लेश ही मिले,
खुले नरक के द्वार।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )