नई सुबह | Nayi Subah
नई सुबह
( Nayi Subah )
रात की चादर में लिपटा एक सपना है,
तेरी राह तकता ये मन बेचैन अपना है।
हर बीते पल में तेरा ही ख्याल है,
सुनो दिकु, बिना तुम्हारे ये जीवन जंजाल है।
तुम बिन ये सवेरा भी अधूरा सा लगता है,
उजालों में भी जैसे दिल में अंधेरा बसता है।
तेरी हँसी की किरन से फिर ये जगमगाएगा,
तुम आओगी तो ये जहाँ भी फिर मुस्कुराएगा।
नई सुबह की पहली किरण में तेरा नाम हो,
मेरी हर धड़कन में तेरा ही पैगाम हो।
तेरी आवाज़ से हर दिन की शुरुआत हो,
तुमसे मिलकर ही पूरी ये मेरी कायनात हो।
तेरी खुशबू से हवा महकने लगेगी,
तेरे संग हर धड़कन बहकने लगेगी।
सुनो दिकु, मेरी दुआओं में हरपल बसी हो तुम,
नई सुबह में मेरे ख्वाबों की रुह से सजी हो तुम।
तुम साथ हो, तो हर अंधेरा भी रौशन हो जाएगा,
तेरे आने से ये आलम भी सजीला हो जाएगा।
नई सुबह का ये इंतजार है,
तेरी मोहब्बत का प्रेम को आज भी ऐतबार है।
तुम्हारे संग हर दिन है नया उजाला,
तेरे बिना ये जीवन बेमानी, विराना और है काला।
कवि : प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
सुरत, गुजरात
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