नज़र
नज़र
**
नज़र लगी है उसको किसकी?
मिटी भूख प्यास है उसकी।
हरदम रहती सिसकी सिसकी,
नज़र से उसके लहू टपकती।
ना कभी हंसती, ना कभी गाती,
विरह की अग्नि उसे जलाती।
ना कुछ किसी से कहती,
चेहरे पे छाई उदासी रहती।
बातें करती कभी बड़ी-बड़ी,
चांद तारों की लगाती झड़ी।
ओ बावरी!
कौन है वो हस्ती?
सपने जिसके दिन रात देखती।
हंसती रोती आंसू पोंछती,
बिन बताए सब कुछ सहती।
जाने रहता है वो किस बस्ती?
खबर करो उसे , है जिसके लिए तरसती!
ब्याह कर ले जाए,
दोनों कुल रौशन हो जाएं;
नई नई खुशियां घर आएं।
घर आंगन में गूंजे किलकारी,
बेटियां होतीं हैं बड़ी प्यारी।
नज़र ना लगे इनके सपनों को,
बस,इतना तजुर्बा हो अपनों को!