मालिक का दरबार
मालिक का दरबार

मालिक का दरबार

( Malik Ka Darbar )

 

यह सारी दुनिया ही उस मालिक का दरबार हो जाए,
अगर आदमी को आदमी से सच्चा प्यार हो जाए ।

 

जाति-मज़हब के नाम पर और लड़ाइयाँ ना होंगी,
अगर इंसानियत ही सबसे बड़ा व्यापार हो जाए ।

 

हरेक कामगार को मयस्सर हो उनके हक़ की रोटी,
अगर मालिक-मज़दूर काम में हिस्सेदार हो जाए ।

 

पशु-पंझी, पेड़-पौधों सब में उसी का नूर दिखाई देगा,
अगर हरकोई इस क़ुदरत का पहरेदार हो जाए ।

 

उसकी ख़िदमत में कोई ऐसा काम करके दिखा ‘दीप,
इस दरबार को छोड़, तू उस दरबार का हक़दार हो जाए ।
?

कवि : संदीप कटारिया

(करनाल ,हरियाणा)

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