Neta bana to

नेता बना तो दंगा कराने निकल पड़ा | Neta bana to

नेता बना तो दंगा कराने निकल पड़ा

( Neta bana to dnaga karane nikal pada ) 

 

वो ज़िंदगी को स्वर्ग बनाने निकल पड़ा,

अंधियारे मे चिराग़ जलाने निकल पड़ा।

 

जब मुफलिसी ने हमको मुफलिस किया यहां..

बेची क़िताब  कर्ज चुकाने निकल  पड़ा।

 

जब जिम्मेवारियों का बोझ सिर पे आ गया,

 कम उम्र में वो लड़का कमाने निकल पड़ा।

 

तनख्वाह जिसकी लाखों करोड़ों में आ रही,

हक वो गरीब का भी दबाने निकल पड़ा।

 

करता था नागा हर घड़ी वो एकता  की बात,

नेता बना तो  दंगा  कराने  निकल  पड़ा।

 

 

कवि – धीरेंद्र सिंह नागा

(ग्राम -जवई,  पोस्ट-तिल्हापुर, जिला- कौशांबी )

उत्तर प्रदेश : Pin-212218

यह भी पढ़ें :

सियासत से बड़ा कोई जालिम नहीं है | Poem on siyasat

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *