यह पांव की पाजेब | Pajeb par kavita
यह पांव की पाजेब
( Yeh paon ki pajeb )
ख़ूबसूरती बढ़ा देती है यह पांव की पाजेब,
ध्यान सब का हटा देती जब बजती पाजेब।
यह भी मुख्य श्रृंगार है विश्व में हर नारी का,
खरीददारी में खाली हो जाती मर्द की ज़ेब।।
नयी-नवेंली दुल्हन इससें शरमाती इठलाती,
दूर दूर तक आवाज़ इसकी कानों में आती।
करके वो सौलह श्रृंगार गलें में हार पहनती,
लेकिन पाॅंवों की शोभा यही पायल बढ़ाती।।
बिंदियां सिंदूर और मेहंदी महिलाऍं लगाती,
लेकिन शादी सगाई में पहलें पाजेब आती।
गौरी हो या काली पाजेब पहनती निराली,
कोई स्वर्ण चाॅंदी कोई रत्नजड़ित बनवाती।।
पहनें थें भगवान भी यह बचपन में श्री राम,
ठुमक ठुमक कर चलतें गोपाला घनश्याम।
छम छम करती पाजेब की सुरीली आवाज़,
पहनकर रहती आज सब नारी आठो याम।।
इसी पायल की झंकार में जीवन का संचार,
अब और क्या लिखूं पायल पर हमारे यार।
तरह-तरह की बनावटें व पहनने के अंदाज़,
सोच-समझकर लेते है पहले करते विचार।।