Patriotism Poem in Hindi

वतनपरस्ती | Patriotism Poem in Hindi

वतनपरस्ती

( Watan parasti )

 

इश्क,आशिकी,महोब्बत , जुनूं ,
तुझसा ही वतन, वतन सा ही है तू….

कहाँ वो अमन, कहाँ मिले सुकूं
न सरहदों के इधर , न सरहदों से दूर….

आज़ाद हुये मगर गुलाम अभी तलक
बात मज़हबों की , इंसानियत से दूर….

खून तो खौलता है, बहता भी है खून
मगर लहू ही लहू की अहमियत से है दूर….

वतनपरस्ती पर तू चाहे लाख हो मजबूर
पर ऐ कलम,फिरकापरस्ती से रहना बहुत दूर..

 

लेखिका :- Suneet Sood Grover

अमृतसर ( पंजाब )

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