आदमी बढ़ने लगा | Poem aadmi badhne laga
आदमी बढ़ने लगा
( Aadmi badhne laga )
आदमी से आदमी ही, आजकल डरने लगा ।
रौंदकर रिश्तों को जब, आदमी बढ़ने लगा ।।
नीम, इमली और बरगद पूछते, कब आओगे.?
छोड़कर वो गांव जब, परदेश को चलने लगा ॥
दूरियाँ उसने बना ली, जो कभी परछाई था
मुफलिसी का जब अंधेरा, दोस्तो घिरने लगा।।
हमने अपनी जिंदगी भी ,की तुम्हारे वास्ते,
पत्ते पत्ते कह उठे थे, पेड़ जब कटने लगा ॥
हर तरफ चर्चा चली, देश आगे बढ़ गया
पर वो नुक्कड़ का भिखारी,भूख से मरने लगा ।।
हां बुरा बनना मुझे मंजूर है,”चंचल” मगर,
जानकर भी ये हकीकत, सच को मैं लिखने लगा ॥
कवि : भोले प्रसाद नेमा “चंचल”
हर्रई, छिंदवाड़ा
( मध्य प्रदेश )