आहिस्ता ही सही कह जज़्बात | Poem Aahista hi Sahi
आहिस्ता ही सही कह जज़्बात
( Aahista hi sahi kah jazbaat )
आहिस्ता ही सही कह दो खोलो मन की गठरी।
भाव भरा गुलदस्ता दास्तानें दिल की वो पूरी।
लबों तक आने दो दिल के सागर की वो लहरें।
छेड़ो प्रीत के तराने प्यारे होठों से हटा दो पहरे।
नयनों से झांककर देखो जरा दिल के झरोखों से।
ना जाने दो सुहाने पल जीवन के हंसी मौको के।
धीरे धीरे से सैलाब ये शब्दों का पिघल जाएगा।
होठों से बरसेगी रसधार प्यार का मौसम आएगा।
तेरा चेहरा तेरी आंखें बहुत कुछ हाल बताती है।
दिल के तार जब छेड़ो धड़कनें झंकार सुनाती है।
मन के मीत कहो ना हमें मन की मधुर सी बातें।
तुम्हारे बिन कटे ना दिन लंबी लगती काली रातें।
बैठ कर पास थोड़ा तो दिल की बातें हम कर ले।
सांसे चार दिन की मेहमान जिंदगी में रंग भर लें।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )