नेत्र ज्योति | Kavita Netra Jyoti
नेत्र ज्योति
( Netra Jyoti )
पहला सुख निरोगी काया, वेद पुराण यश गाया।
सेवा कर्म पावन जग में, नेत्र ज्योति जो दे सके।
बुढ़े और बीमारी को, अंधों को लाचारों को।
वक्त के मारो को, कोई सहारा जो दे सके।
ऋषी मुनियों ने, साधु संतों और गुणियों ने।
नेत्रदान महादान, जो दानवीर हो कर सके।
नर सेवा नारायण सेवा, सेवा धर्म सर्वोपरि।
जो सच्चे सपूत हो, सच्चा सुख जो दे सके।
दृष्टि मिल जाए किसी को, पुण्य का काज भला।
नैन सुख दे हर आत्मा की, आशीष जो ले सके।
चिकित्सा शिविर सुलभ, सुख का बन जाए धाम।
बेबस लाचारों को यहां, नजर वापस जो दे सके।
धन्य है वो लोग ऐसे, पुण्य का करते नित काम।
उजियारा भर जीवन में, कीर्तिमान जो रच सके।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )