अभी और सधना होगा | Poem abhi aur sadhna hoga
अभी और सधना होगा
( Abhi aur sadhna hoga )
नहीं साधना पूरी हुई है, अभी और सधना होगा।
अभी कहाँ कुंदन बन पाये, अभी और तपना होगा।।
अभी निशा का पहर शेष है, शेष अभी दिनकर आना
अभी भाग्य में छिपा हुआ है, खिलना या मुरझा जाना
अभी और कंटक आना है, जीवन पथ की राहों में
अभी छिपा है सुख दुख सारा, मौन समय की बाहों में
अभी समर्पण और शेष है, अभी और तजना होगा।
अभी कहाँ कुंदन बन पाये, अभी और तपना होगा।।
अभी शशि की शीतलता से, तुमने हृदय मिलाया है
अभी अमावस देखी न है, नहीं ग्रहण की छाया है
अभी मिली है सीधी राहें, कठिनाई का भान नहीं
अभी तुम्हें अपने पराये का, चतुराई का ज्ञान नहीं
अभी कसौटी रही अधूरी, अभी और मपना होगा।
अभी कहाँ कुंदन बन पाये, अभी और तपना होगा।।
अभी ओस की बूँदों ने ही आँगन तेरा सजाया है
अभी सही न बरसातें भी, अभी शिशिर न आया है
अभी बसंती मधुमास ने, प्रेम ही घोला कानों में
अभी ग्रीष्म से मिलन हुआ न, पड़े नहीं तूफानों में
अभी शिखर “चंचल” न आया, अभी और चढ़ना होगा।
अभी कहाँ कुंदन बन पाये, अभी और तपना होगा।।
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कवि : भोले प्रसाद नेमा “चंचल”
हर्रई, छिंदवाड़ा
( मध्य प्रदेश )