पूस की ठंड
( Poos ki thand )
पूस की ठंडी ठिठुरन में
तन मन जा रहा है कांप।
आसमान तक फैली है सर्दी
सूरज गया लंका दिशि चाप।।
बीती रात जब हुआ सवेरा
धरती को कोहरे ने घेरा।
दिन का है कुछ पता नहीं
चारों तरफ बस धुआं अंधेरा।।
ठंड से वसुधा रात में कांपी
मानो सुबह किए है मान।
बर्फ की चादर ओढ़े दिन में
बैठी है मानो सकुचान।।
छोड़ रजाई बच्चे निकले
पहनकर स्वेटर, बांध के कान ।
तन मन ठंड से कांप रहा है
मानो निकल जाएंगा प्रान।।
ओस की बूंदे झिलमिल करती
फूल और कलियों पर फैली हैं।
नभ तक फैला है कोहरा
चारो दिशाएं मटमैली है।।
चाय पी रहे बूढ़े बच्चे
घर घर में है जला अलाव।
ताप ताप जब तन गरमाए
मान में आता थोड़ा ताव।।