Poem apni chabi nihar

अपनी छवि निहार | Poem apni chabi nihar

अपनी छवि निहार

( Apni chabi nihar )

 

अपनी छवि निहार , सुध भूद खोई बैठी
नयन राह देखे मेरे , सखियों से दूरी होई।।

दिनभर चली पवन , पर कम न हुई तपन ,
पानी से भीगा तन, फिर भी प्यासा ये मन ।।

अटखेलियां करती में, तुम बिन नीरस होई,
फिर से खिल उठे मन ,देख तुम्हें ओ निर्मोही ।।

अंखियों में बसी छवि ,मन में विरह की पीर
कैसे जाऊं सखियों संग ,गाने घाट पर गीत ।।

 

आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश

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