Poem Bagawat na Karo

बगावत ना करो | Poem Bagawat na Karo

बगावत ना करो

 ( Bagawat na karo ) 

 

जब दे रही हो दिल तो किफायत ना करो,
है प्यार की तमन्ना तो तिजारत ना करो।
तन्हाइयों से आखिर खेलोगी कब तलक,
इस मदभरी तू रात में बगावत ना करो।

तुम पाओगी यहाँ पे खुशबुओं का डेरा,
है दो दिलों का मेल ये सियासत ना करो।
सागर हूँ तेरा मैं, हो दरिया तुम मेरी,
आकर के तू मिलोगी खिलाफत ना करो।

संसार है ये फानी जवानी कहाँ टिकी,
आओ मेरे तू पहलू शिकायत ना करो।
तूने चुराया दिल क्यों पहली ही नजर में,
जब पी लिया है जाम तो शरारत ना करो।

हद से गुजर रही हो तू दर्द-ए-इश्क से,
रुह में मुझे छुपा के खुद वकालत ना करो।
तेरे साँस में घुली मेरे साँस की महक,
दो जिस्म के तलब की वसीयत ना करो।

आँखें बिछा के बैठे रस्ते पे हम तेरे,
यदि बोझ दिल से उतरे कयामत ना करो।
मेरी नजर की इतनी देखो बस खता है,
जिस मोड़ पे उमर है, जमानत ना करो।

 

 

रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक), मुंबई

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