Poem holika dahan

होलिका दहन | Poem Holika Dahan

होलिका दहन

( Holika Dahan )

( 2 ) 

करना है काम एक आज होलिका दहन में
जलानी है कमी एक जो भि है निज के मन में
अधर्म पर धर्म की जीत का प्रमाण समक्ष होगा
करें दूर कल क्यों, आज के दिन हि प्रत्यक्ष होगा

तब हि इन शुभ कामनाओं का कोई अर्थ होगा
अन्यथा यह भी औपचारिकता मे हि समर्थ होगा
कहकर अपनी हि बात का पालन भी करते रहें
सद्भावना के मार्ग पर निज पहल के साथ चलते रहें

खुशियाँ तो आती हैं, जब दहन बुराइयों का हो
अर्थ क्या जले होलिका, तब भी कमी कम न हों
जरूरी है कि आग भीतर की भी जल जाए आज
स्वक्ष निर्मल मन से उठकर उभरे फिर यह समाज

प्रतिज्ञा आज हमे भी यही करनी जरूरी है
द्वेष, बैर पाल लिए जो भि अबतक के मन में
करेंगे शुद्ध आचरण संग व्यवहार अब से जीवन में
इसी संकल्प के साथ होना है शामिल होलिका दहन में

मोहन तिवारी

( मुंबई )

 

( 1 ) 

होलिका भी जल गई, ले भक्त प्रह्लाद को गोद।
हर्षित सारा जग हुआ, सब जन मनाते मोद।

 

सद्भावों की लहर चली, छाई रंगों की बहार।
होली पर्व उमड़ रहा, घट घट में हर्ष अपार।

 

भक्त प्रल्हाद ध्यानमग्न, प्रभु का परम आराधक।
बाल न बांका हो सके, जब साधना करे साधक।

 

भक्त वत्सल भगवान, भक्तों का देते सदा साथ।
लाख तूफां आए चाहे, जब रक्षा करते दीनानाथ।

 

हिरण्यकश्यप मरा, हरि ने लिया न्रसिंह अवतार।
सबकी रक्षा हरी करते, जो सारे जग का करतार।

 

भाईचारा प्रेम से हम, सब मनाते होली त्योहार।
उर उमंग हिलोरें ले रही, रंगों की लेकर बहार।

 

एक दूजे को रंग लगा, आओ सब मनाएं होली।
मधुर तराने गीत सुहाने, झूमे रसिकों की टोली।

 

 ?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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